18 जनवरी, 2011

है न्याय कैसा

है जिंदगी मेरी
एक टिमटिमाता दिया
रोशनी कभी धीमी
तो कभी तीव्र हो जाती है
वायु का एक झोंका भी
मन अस्थिर कर जाता है ,
अंतर्द्वन्द मचा हुआ है
कोई हल नहीं मिलता
चाहती थी एक
मगर एक साथ दो आई हैं
कैसे इन नन्हीं कलियों का
जीवन यापन कर पाऊँगी
मन चाही हर खुशी से
इनकी दुनिया रँग पाऊँगी |
पहले ही कठिनाई कम थी
दो जून रोटी भी
सहज उपलब्ध थी
अब दो मुँह और बढ़ गए हैं
हैं हाथ केवल दो काम के लिये
आर्थिक बोझ उठाने के लिये |
बढ़ गई संख्या हमारी
उस पर मँहगाई की मार ,
सारी खुशियाँ छिनने लगी हैं |
यह नहीं कि मैं माँ नहीं हूँ
संवेदना नहीं है मुझ में
दोनों ही प्यारी हैं मुझे
लगती हैं अनियारी मुझे |
छोटी-छोटी आवश्यकतायें
जब पूरी नहीं कर पाती
बहने लगती अश्रु धारा
बहुत अधीर हो जाती हूँ |
जो चाहती थीं गोद हरी हो
नन्हीं सी गुड़िया घर आए
जाने क्या-क्या कर रही हैं
जादू टोना , तंत्र मन्त्र |
पर घर गूँज उठा मेरा
दोनों कि किलकारी से
पर अनचाही चिंता भी साथ आई है
दोनों के आगमन से |
फिर भी है विश्वास
जब गोद भर गई है
नैया भी पार
लग ही जायेगी |
मँहगाई का रोना क्या
कभी नियंत्रण
उस पर भी होगा
प्रभु कि कृपा कभी तो होगी |
पर एक विचार मन में आता है
है न्याय कैसा ईश्वर का
जहाँ चाह है राह नहीं है
पर हमने तो बिना माँगे ही
झोली भर-भर पा लिया है |

आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    बहुत बारीकी से मनोभावों को संजोया है।

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  2. जब पूरी नहीं कर पाती
    बहने लगती अश्रु धारा
    बहुत अधीर हो हाती हूँ |
    जो चाहती थीं गोद हरी हो
    नन्हीं सी गुड़िया घर आए
    जाने क्या क्या कर रही हैं
    जादू टोना ,तंत्र मन्त्र |

    पढ़ते हुए अहसास की सिहरन जैसे नस नस में दौड़ जाती है !
    शब्द जैसे अर्थ के सीमा को पार कर गए हैं !
    इतनी गहन अभिव्यक्क्ति !

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  3. जुड़वां बच्चियों से होने वाली चिन्त्ता व्यक्त करती अच्छी रचना

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  4. ईश्वर की लीला न्यारी है ! उसका हाथ किसे कब और कितना दे जाएगा इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है और किसकी झोली वह खाली रहने देगा यह भी अनिश्चित ही है ! ममता और मँहगाई की दुश्चिंता के द्वंद्व को सार्थक अभिव्यक्ति देती एक सुन्दर रचना !

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  5. मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
    ऊपर वाले का न्याय जल्दी समझ में नहीं आता ,वह जो भी करता है हमारे भले के लिए ही करता है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..ममता और मंहगाई के बीच संघर्ष को बहुत मार्मिकता से उकेरा है.लेकिन निम्न पंक्तियाँ जीवन के सत्य को उजागर करती हैं :
    पर हमने तो बिना माँगे ही
    झोली भर-भर पा लिया है |

    ईश्वर जो भी करता है वह अच्छा ही करता है. आभार

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  7. प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव सदैव रहना चाहिए। आगे,जहां चाह वहां राह।

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  8. सुन्दर रचना है!
    इसे प्रिंट मीडिया में भी आना चाहिए!

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  9. आपलोगों का स्नेह इसी प्रकार बना रहे ऐसी आशा है |
    आशा

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