30 मार्च, 2011

अडिग विश्वास


झोंपड़े में टिमटिमाता दिया
है अपार शान्ति वहाँ
ना बैर न प्रीत किसी से
केवल संतुष्टि का भाव वहां |
था निश्चिन्त निश्छल
श्रम ही था जीवन उसका
वर्तमान में जीता था
कल क्या होगा सोचा न था |
था अटूट विश्वास कर्ता पर
पर कभी कुछ चाहा नहीं
प्रारब्ध में जो कुछ लिखा था
विधाता की देन समझता था |
अडिग विश्वास नियति पर था
अतृप्ति का भाव न था
कठिन परिश्रम करता था
गहरी नींद में सोता था |
है जीवन क्या और मृत्यु क्या
मन में कभी आया नहीं
मोक्ष किसे कहते हें
यह भी कभी विचारा नहीं |
व्यस्तता इतनी रहती थी
ऐसी बातों के लिये समय न था
ये सब व्यर्थ लगती थीं
कर्म पर ही विश्वास था |
कभी हार नहीं मानीं
एक दिन सब छोड यहीं
प्रकृति की गोद में सर रख कर
चिर निद्रा में खो गया |

आशा





9 टिप्‍पणियां:

  1. अतृप्ति का भाव न था
    कठिन परिश्रम करता था
    गहरी नींद में सोता था |
    है जीवन क्या और मृत्यु क्या
    मन में कभी आया नहीं

    इनसे बढ़कर खुशकिस्मत कौन....पर लोग इतनी सी बात नहीं समझ पाते..
    सार्थक अभिव्यक्ति

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  2. कभी हार नहीं मानीं
    एक दिन सब छोड यहीं
    प्रकृति की गोद में सर रख कर
    चिर निद्रा में खो गया |

    YAhi jeevan ka sasvat satya hai,
    Bahut sunder
    http://vivj2000.blogspot.com Vivek Jain

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  3. sunder abhivykti.....kisi mahan darshnik ke anusar hamara roz ka sona chir nidra kee rehersal hee hai..

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  4. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ........अति सुन्दर

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  5. व्यस्तता इतनी रहती थी
    ऐसी बातों के लिये समय न था
    ये सब व्यर्थ लगती थीं
    कर्म पर ही विश्वास था |
    कभी हार नहीं मानीं
    एक दिन सब छोड यहीं
    प्रकृति की गोद में सर रख कर
    चिर निद्रा में खो गया |

    ...................सार्थक अभिव्यक्ति

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  6. वास्तव में देखा जाये तो जीवन को सच्चे अर्थों में वह श्रमजीवी ही जी रहा था जो निष्काम भाव से कर्म कर रहा था ! काश अन्य लोग भी उससे कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकें जो दिनरात धन दौलत की जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं या मोक्ष मार्ग साधने के लिये साधू महात्माओं के आश्रमों के चक्कर लगाते रहते हैं ! बहुत ही सशक्त एवं सारगर्भित प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  7. जीवन की सबसे बड़ी बात आपनें भावपूर्ण रचनां के माध्यम से सरलता से
    समझाई है ,धन्यवाद |

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  8. आदरणीय आशा दी ,
    आपकी हर कविता ज़िन्दगी के सच को उद्घाटित करती है ।
    सादर !

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  9. झोंपड़े में टिमटिमाता दिया
    है अपार शान्ति वहाँ
    ना बैर न प्रीत किसी से
    केवल संतुष्टि का भाव वहां ....अति सुन्दर

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