27 मार्च, 2011

जाने ऐसा क्या है इसमें



जाने ऐसा क्या है इसमें
बहुत मोह होता इससे
यदि हल्की सी ठोकर भी लगे
मन को विचलित कर जाए |
झूठे अहम चैन से
उसे रहने नहीं देते
उलझ कर उनमे ही रह जाता
नियति के हाथ की
कठपुतली बन कर |
क्या है उचित और क्या अनुचित
इसका भी ध्यान नहीं रखता
चमक दमक की दुनिया में
इतना लिप्त होता जाता
यह तक समझ नहीं पाता
कि वह क्या चाहता है |
गर्व की चरम सीमा पर
होता है प्रसन्न इतना कि
वह सब से अलग नहीं है
यह तक भूल जाता है |
संयम और सदा चरण
होने लगते दूर उससे
फिर भी भागता जाता है
आधुनिकता की दौड़ में |
दिन में व्यस्त काम काज में
रात गवाता चिंताओं में
फिर भी मन भटकता है
शान्ति की तलाश में |
है संतुष्टि से दूर बहुत
माया मोह में आकंठ लिप्त
शायद भूल गया है
सब यहीं छूट जाएगा |
है यह तन विष्ठा की गठरी
ऊपर से सुंदर दिखा तो क्या
एक दिन मिट जाएगा
चंद यादें छोड़ जाएगा |

आशा


13 टिप्‍पणियां:

  1. "है संतुष्टि से दूर बहुत
    माया मोह में आकंठ लिप्त
    शायद भूल गया है
    सब यहीं छूट जाएगा |"

    बहुत सही विचार सामने रखे हैं आपने.

    सादर

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  2. Bahut hi sahi kaha hai Aasha ji aapne...

    Dinkar ji ne poorv me hi kaha tha..."Aadmi bhi kya anokha jeev hota hai...uljhanein apni bana kar aap hi fansta, aur fir bechain ho jagta na sota hai."

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  3. शायद भूल गया है
    सब यहीं छूट जाएगा |
    है यह तन विष्ठा की गठरी
    ऊपर से सुंदर दिखा तो क्या
    एक दिन मिट जाएगा
    चंद यादें छोड़ जाएगा |

    पूरे जीवन दर्शन को इन पंक्तियों में समाहित कर दिया आपने ...आपका आभार

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  4. सब कुछ जानकर भी सब शामिल हैं इस दौड़ में।

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  5. माननीय आशा जी!
    आँखें हैं नम, दिल में है गम।
    कहाँ से कहाँ पर आ गए हम॥
    आपके कथन से टूट गए भ्रम।
    शील और संयम में है बड़ा दम॥
    ======================
    प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
    जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
    ======================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  6. आज की परिस्थिति का सजीव चित्रण ... बस हर कोई ऐसे ही भाग दौड रहा है ...बिना सोचे समझे ..ना जाने क्या समेटना चाहता है ..

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  7. भीड़ में मौजूद हर व्यक्ति जानता है यह दौड़ निरर्थक है , फिर भी भागा जा रहा है ...
    दार्शनिक ख्याल !

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  8. मोह माया की दौड़ में आकण्ठ लिप्त मानव मन की जिजीविषा को बहुत सूक्ष्मता से अभिव्यक्त किया है ! गहन जीवन दर्शन से भरपूर एक बहुत ही परिपक्व रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !

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  9. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    पूरे जीवन दर्शन को समाहित कर दिया आपने

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  10. है संतुष्टि से दूर बहुत
    माया मोह में आकंठ लिप्त
    शायद भूल गया है
    सब यहीं छूट जाएगा |
    है यह तन विष्ठा की गठरी
    ऊपर से सुंदर दिखा तो क्या
    एक दिन मिट जाएगा
    चंद यादें छोड़ जाएगा |

    सच लिखा है आपने.
    सलाम.

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  11. जिसनें मन की आँखें बंद कर रखी हों वो दुनिया अपनें ही चश्में से देखता है|सच सभी जानते हैं पर स्वीकार कोई नहीं करता है | यही जीवन का
    कटुसत्य है |

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  12. उच्चकोटि के भावों से सजी पवित्र रचना .....अति सुन्दर

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