14 अप्रैल, 2011

प्रेम के प्रतीक


प्रकृती के आँचल में
जहाँ कई प्राणी आश्रय लिये थे
था एक सुरम्य सरोवर
रहता था जिस के समीप
श्याम वर्ण सारस का जोड़ा |
लंबा कद लालिमा लिये सर
ओर लम्बी सुन्दर ग्रीवा
सदा साथ रहते थे
कभी जुदा ना होते थे |
नैसर्गिक प्रेम था उनमें
जो मनुष्य में लुप्त हो रहा
वे स्वप्नों में जीते थे
सदा प्रसन्न रहते थे |
एक सरोवर से अन्य तक
उड़ना और लौट कर आना
अपनी भाषा में ऊंचे स्वर में
इक दूजे से बतियाना
था यही जीवन उनका |
प्रेमालाप भी होता था
पास आ कर
एक दूसरे की ग्रीवा सहला कर
बड़े प्रसन्न होते थे |
उनका चलना ,उनका उड़ना
जल में चोंच डाल
आहार खोजना
मनभावन दृश्य होता था |
जिसने भी देखे ये क्रिया कलाप
उसने ही सराहा प्यार के अनोखे अंदाज को
कुछ तो ऐसे भी थे
उनके प्यार की मिसाल देते थे |
समय के क्रूर हाथों ने
इस प्यार को ना समझ पाया
क्षुधा पूर्ति हेतु
किसी ने एक को अपना शिकार बनाया |
दूसरा सारस उदास हुआ
जल त्यागा
भोजन भी त्यागा
क्रंदन करता इधर उधर भटका |
जिसने भी यह हालत देखी
सोचा कितना
क्रूर होगा वह
जिसने इसे बिछोह दिया
थी जहां पहले खुशी
अब थी व्यथा ही व्यथा |
एक सुबह लोगों ने देखा
वह भी दम तोड़ चुका था
चारों ओर सन्नाटा था
सारस युगल अब ना था
पर यादें उनकी बाकी थीं |

आशा












9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    कोमल भावों की शानदार कविता ने मन मोह लिया.
    बहुत सुन्दर कविता..........दिल को आनन्दित करती हुई पंक्तियाँ!
    आप से अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है बहुत सुंदर

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  2. एक सुबह लोगों ने देखा
    वह भी दम तोड़ चुका था
    चारों ओर सन्नाटा था
    सारस उगल अब ना था
    पर यादें उनकी बाकी थीं |
    bahut marmik

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय आशा जी ,

    मर्म को छू गयी , आँखों को नम कर गयी आपकी रचना |

    सारस के के जोड़े में अद्भुत प्रेम होता है , यह दृश्य मैंने भी देखा है | एक के मरने पर दूसरे ने तड़फ -तड़फ कर जान दे दी |

    काश ऐसा ही प्रेम इंसान में भी होता !

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  4. दर्दभरी कथा ! मानव से इतनी संवेदनशीलता की अपेक्षा भी अब समाप्त होती जा रही है ! सृष्टि का सबसे बुद्दिमान प्राणी समझा जाने वाला मानव ही सबसे अधिक अमानवीयता एवं हृदयहीनता के प्रमाण देता रहता है ! मार्मिक रहना !

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  5. कल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/
    (16.04.2011)

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  6. हर जीव से प्यार करना चाहिए। आपने रचना के माध्यम से उत्तम संदेश दिया है।

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  7. सदा साथ रहते थे
    कभी जुदा ना होते थे |
    नैसर्गिक प्रेम था उनमें
    जो मनुष्य में लुप्त हो रहा
    आदरणीया आशा जी यों तो आप ने देखा ही है की हम इस समाज के दर्द- व्यथा -पीड़ा -से भरे हैं मेरी कविताये अधिकतर आग ह्रदय में समेटे रहती हैं पर कभी कभी हम आप की रमणीय प्रकृति में आ कुछ पल बिता लेते हैं ,मन को न जाने इस देश में और कब ,कहाँ शांति मिल पाए इसलिए ,
    बहुत सुन्दर आप की रचनाएँ ,मन को छू जाती हैं मन कहे तो अपना सुझाव व् समर्थन हमें भी दें
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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