23 अप्रैल, 2011

यह कैसा आचरण


आज मैं अपनी ३५१ बी पोस्ट डाल रही हूँ | आशा है एक सत्य कथा पर आधारित यह रचना आपको पसंद आएगी |

थी आकर्षक अग्नि शिखा सी
आई थी ऑफिस में नई
सब का मन मोह लेती थी
अपनी मनमोहक अदाओं से |
दिखता था अधिकारी बहुत सौम्य
था अनुभवी ओर धनी व्यक्तित्व का
तथा स्वयं योग प्रशिक्षित |
उसने प्रेरित किया
योग की शिक्षा के लिये
फिर प्रारम्भ हुआ सिलसिला
सीखने ओर सिखाने का |
भावुक क्षणों में वह बौस को गुरू बना बैठी
ऑफिस आते ही नमन कुर्सी को कर
चरण रज माथे लगाती
तभी कार्य प्रारम्भ करती |
सभी जानते थे क्या हों रहा था
वह मर्यादा भी भूल चुकी थी
आगे पीछे घूमती थी
स्वविवेक भी खो बैठी थी |
जब मन भर गया बौस का
उससे दूरी रखने लगा
वह मिलने को भी तरस गयी
अपना आपा खो बैठी |
पर एक दिन अति हो गयी
गाडी रोक कर बोली
मैं जाने नहीं दूंगी
मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी |
सभी यह दृश्य देख रहे थे
मन ही मन में
कुछ सोचा उसे धक्का दिया
पागल कहा और चल दिया |
जो कभी विहंसती रहती थी
थी चंचल चपला सी
अब बासी फूल सी
दिखने लगी |
फिर भी इतिश्री नहीं हुई
करा दिया उसका स्थांतरण
दूरस्थ एक शहर में
केवल अपने प्रभाव से |
मझा हुआ खिलाड़ी था
जानता था किसको कैसे जीता जाता है
अपने पद का दुरूपयोग कर
कैसे लाभ लिया जाता है |
आशा








16 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुन्दर भावमयी पंक्तियाँ

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  2. सच कहा ...
    अबला बन कर जब भी नारी गयी पुरुष के पास,
    दोहन कर पूरी तरह से तोड़ा पुरुष ने उसका विश्वास।
    हर नारी नर से है आगे,न ही समझे खुद को कमजोर,
    नर के आगे न गिड़गिड़ाए कभी, न मांगे उससे ठौर...
    हर पुरुष यह जान ले कि नारी ही से उसका अस्तित्व,
    कभी भी भूल कर कुदृष्टि न डाले न ध्वस्त करे सतीत्व।

    आशा जी ...आपकी काव्य रूपी आज कि सच्चाई पर मेरा विचार...मेरे शब्द और विचार हो सकता है कुछ लोगों को पसंद न आए...मैं क्षमाप्रार्थी हूँ , पर जो बातें आपने लिखी है वे मथ गयी मुझे।...

    बहुत सीधी सच्ची बात आपने कही अत्यंत ही सरल लहजे में...आभार ...

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  3. आज के युग की निर्मम सच्चाई ! यह नारी पर ही निर्भर करता है कि वह सतर्क और सावधान रहे और, सही और गलत में फर्क करना सीखे और अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रख अपने आस पास रहने वाले लोगों के इरादों को भांपने की क्षमता स्वयं में विकसित करे ! तभी वह अपनी अस्मिता की रक्षा कर पायेगी ! लोगों को जागरूक करती एक सार्थक रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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  4. kisi bhi anjaane par vishwas nahi karna chahiye ....
    aur agar kisi ke saath aisi ghatna hoti hai tab hame buland hokar aawaaz uthaana chahiye...

    swayam par vishwas karen...

    is rachna se sab ko sikh milega ....

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  5. मझा हुआ खिलाड़ी था
    जानता था किसको कैसे जीता जाता है
    अपने पद का दुरूपयोग कर
    कैसे लाभ लिया जाता है |bhare hain aise log ...is sachchaai ka virodh bhi nahi hoga

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  6. सच्चाई का भावपूर्ण मार्मिक चित्रण.....

    बड़े दुःख की बात है की बराबर धोखा खाते रहने के बाद भी सरल सौम्या नारी पुरुष की पापी प्रवृति को नहीं भांप पाने के कारण विश्वास में आ जाती है और अपना सर्वस्व खो बैठती है |

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  7. अतिसुन्दर भावमयी पंक्तियाँ |

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  8. वाकई... कटु सत्य का भावपूर्ण चित्रण.

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  9. एक कटु सत्य को वाकये में ढलती कविता ...
    सुन्दर !

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  10. आशा जी आपने सही कहा है...
    दरअसल गलती उस लड़की भी है, क्योंकि ज़्यादातर लड़कियां समझती हैं कि वे जल्दी से जल्दी सब कुछ पा लेंगी.. अगर शेर किसी जानवर का शिकार करता है तो शेर को कुछ नहीं कहा जायेगा, क्योंकि उसका स्वाभाव ही ऐसा है, लेकिन अगर शिकार खुद चल कर शेर के पास जाये तो क्या कहा जायेगा....?
    सब खुद को तीस मारखां समझते हैं, लेकिन किसी न किसी को नुक्सान तो उठाना ही पड़ेगा न...

    Come to my Blog, Welcome
    मिलिए हमारी गली के गधे से

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  11. यथार्थ चित्रण । यही हो रहा है और हो जाता है अक्सर भावुकता में , प्रमोशन के प्रलोभन वश ,आकर्षक अग्नि शिखा का प्रयोग बहुत उत्तम किया गया है , विहंसती रहती थी चंचल चपला सी एक सुन्दर वाक्य, वासी फूल शब्द बिल्कुल मौजूं है। अन्त भी सुन्दर है कि सब जानता था कि किसको कैसे जीता जाता है।एक शिक्षालेने लायक कविता ।

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  12. कटु सत्य. किसका दोष है ये अलग बात है. लेकिन ऐसा होता है तब नारीको ही ज्यादा सहन करना पडता है. लोग यही कहेगे की खुद चलकर मुश्कील क्यु मोड ली. लेकीन युवानी मी, जीसे गधा-पच्चीसी कहते हे, ये सब समजना मुश्कील होता है. नारी को अपना हित खुद ही समजना होगा.

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