21 अप्रैल, 2011

अब तक तलाश जारी है


कुछ भी अधिक नहीं चाहा
जो मिला उसी को अपनाया
फिर भी जब मन में झांका
खुद को बहुत अकेला पाया |
सामंजस्य परिस्थितियों से
आज तक ना हो पाया
अपनों ने जब भी ठुकराया
गैरों ने अपना हाथ बढ़ाया |
तब भी सोच नहीं पाया
है कौन अपना कौन पराया
कब कोई भीतर घात करेगा
यह भी ना पहचान पाया |
जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
कोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
कई बार विचार आता है
सब एक से नहीं होते
कोई तो ऐसा होगा
जो निस्वार्थ भाव लिए होगा |
अब तक तलाश जारी है
जाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |

17 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे ख्याल से ऐसा सबके साथ होता है.

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  2. जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
    कोई अपना नजर ना आया
    है स्वार्थी दुनिया सारी
    फिर भी स्वीकार ना कर पाया |... aur talaash bani rahi, bahut achhi rachna

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  3. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ...बहुत सुन्दर कविता......

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  4. bahut sunder abhivyakti ----har man ki yahi katha ...
    har man ki yahi vyatha ....!!

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  5. यात्रा जारी रखिये ! कभी न कभी तो तलाश ज़रूर पूरी होगी ! सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !

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  6. कई बार विचार आता है
    सब एक से नहीं होते
    ekdam theek vichar hai....

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  7. तलाश जारी रखें ...
    कोई तो निस्वार्थ रिश्ता भी मिलेगा ...
    या क्यों ना ये करें ...
    खुद ही कोई रिश्वा निस्वार्थ निभाएं !

    उम्मीदों की अच्छी कविता !

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  8. है मतलब की दुनिया सारी...

    खोज चिंतन चलता रहने दीजिये । उत्तम प्रस्तुति. आभार सहित...

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  9. man ki gaanth khol rakhiye...vyatha nadi ban kar bah jaayegi....

    bahut hi bhavpoorn kavita aur lekhni to aapki sashakt hai hi...badhayi

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  10. सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति| बधाई स्वीकार करें|

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  11. जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
    कोई अपना नजर ना आया
    है स्वार्थी दुनिया सारी
    फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
    bahut khoob

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  12. अब तक तलाश जारी है
    जाने कब कौन
    किस रूप में आए
    पूर्ण रूप से अपनाए |

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    शुभकामनायें !

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  13. आदरणीय आशा दी ,
    बिलकुल सच कहा आपने "सब एक से नही होते "......सादर !

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  14. आप सब का बहुत बहुत आभार ब्लॉग पर आकार मुझे लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए |
    आशा

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  15. Jeevan ki ye anant talaash khud ke andar dekhne se ti mit ti hai .... sundar bhaav leya rachna hai ...

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