12 मई, 2011

जब कंचन मेह बरसता है


जब कंचन मेह बरसता है
वह भीग सा जाता है
जितना अधिक लिप्त होता है
कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता है |
उस बोझ तले
जाने कितने
असहाय दब जाते हैं
निष्प्राण से हो जाते हैं |
वर्तमान में यही सब तो हो रहा है
धनिक वर्ग का धन संचय
दिन दूना रात चौगुना
बढाता ही जा रहा है |
अपनी बदनसीबी पर निर्धन
महनत कर भी रो रहा है
शायद ईश्वर ने भी सब को
बाँट कर खाना नहीं सिखाया |
कुछ ने तो भर पेट खाया
और कुछ को भूखा सुलाया
बड़े तो सह भी लें
पर नन्हीं जानों का क्या करें |
यदि पेट में अन्न ना हो
सोने का नाम नहीं लेते
उनका रोना हिचकी भर भर
विध्वंसक विचार मन में लाता है |
नकारात्मक सोच उभरते हैं
मन विद्रोही हो जाता है
भूले से कोई सज्जन भी हो
वह भी दुर्जन ही नजर आता है |
आशा






15 टिप्‍पणियां:

  1. आशाजी वास्तव में उसका विधान विचित्र है.परन्तु,सभी अपने कर्मों का भोग ही तो भोगते है.यदि आज कोई अमीर है तो यह उसके पिछले किन्हीं पुण्य का प्रभाव हों सकता है.और यदि वह अब पापं कर रहा है तो भविष्य में उसे कुपरिणाम भुगतना पड़ेगा.आवश्यकता है वर्तमान में सही सकारात्मकता सोच , सही ज्ञान और कर्म की.फिर चाहे अमीर हों या गरीब.

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  2. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार
    कितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।

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  3. बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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  4. समाज की विसंगतियों पर चोट करती एक सार्थक रचना ! लेकिन यह असमानता का अभिशाप ईश्वर प्रदत्त नहीं है ! इसके लिये हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं !

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  5. अमीरी और गरीबी पर चोट करती अच्छी रचना

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  6. विसंगतियाँ चहु ओर हैं ...

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  7. Aash ji bahut achche vishay par likha hai aapne.yah humaai raajneeti yah so called prajatantra kuch paristhitiyan kuch nikammapan logon ko nirdhan bana deta hai.par nanhi jaano ka kya dosh???ek bahtreen prastuti.

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  8. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  9. इस रचना पर कल टिप्पणी कर चुकी हूँ ! लेकिन वह गायब हो गयी ठीक वैसे ही जैसे मेरी पोस्ट से गायब हो गयी हैं ! कोई बात नहीं ! आपने समाज की कटु विसंगतियों की ओर इशारा किया है ! यह बहुत दुखद स्थिति है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि असमानता का यह अभिशाप ईश्वर प्रदत्त नहीं है ! इसके लिये हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं ! गहन गंभीर रचना के लिये बधाई !

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  10. अनुभव सिक्त और भाव प्रवण कविता प्रस्तुत करने के लिए सादर नमन आदरणीया आशा जी

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  11. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

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