31 मई, 2011

भरम टूट ना जाए


इस बेरंग उदास  जिंदगी में
तुम बहार बन  कर आए
काली घटाएं जब छाईं
स्नेह की फुहार बन  कर आए |
रास्ता भूली भटक गयी
गंतव्य तक ना पहुँची
तभी सही मार्ग दर्शन दिया
मेरी राह बन कर आए |
इस सूखी बंजर भूमि पर
बहुत थी वीरानगी
नए पौधे लगाए
हरियाली बन कर छाए |
अब सजने लगे सपने
कई लगने लगे अपने
आसपास बने झूठे आवरण से
बाहर मुझे निकाल पाए |
नैराश्य भरे जीवन में
 कुछ इस तरह छाए
जैसे किसी सरोवर में
कई कमल खिलाए |
इस बेरंग जीवन में
जब सब से दूर रही
 अवसाद ने जड़ें जमाईं
मेरे लिए मनुहार बन कर आए |
मैं हूँ बहुत खुश
आज की स्थिती के लिए
कहीं जाने की बात ना करना
कहीं मेरा भरम टूट ना जाए |
आशा



14 टिप्‍पणियां:

  1. कोई भरोसा नहीं इस भ्रम का,

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  2. hr bar naa ummidi me umid ki kiran btaati bhtrin kvitaa mubark ho aashaavaad ki aashaa ji dhnyvad..akhtar khan akela kota rajsthan

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  3. हमारी भी यही दुआ है कि यह भरम ना टूटे ! बहुत भावपूर्ण कोमल सी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  4. a very soft and delicate piece of writing.
    And yeah we all live in a kind of self-created illusion and thing is we never want to come out of it :)

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  5. भरम ना टूटे ! बहुत भावपूर्ण रचना !

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  6. जैसे किसी सरोवर में
    कई कमाल खिलाए
    बहुत सुन्दर रचना बस इस लाइन में एक भूल हुई है कमल की जगह कमाल हो गया है , इसे ठीक करिए बाकि बहुत सुन्दर रचना है आप बहुत सुन्दर लिखती हैं

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  7. मीनाक्षी जी आप ब्लॉग पर आईं बहुत अच्छा लगा |त्रुटि सुधरवाने के लिए बहुत बहुत आभार|
    आशा

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  8. कहीं जाने की बात ना करना
    कहीं मेरा भरम टूट ना जाए |

    ummeed ki duniya hai
    ummeed pe tiki hai

    bahut hi sunderta se rishte ki rooprekha rach di hai

    itne prem bhare shabdon mein bandhegi to koi kabhi nahi jayega chhod kar Asha ji

    :)

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  9. इस सूखी बंजर भूमि पर
    बहुत थी वीरानगी
    नए पौधे लगाए
    हरियाली बन कर छाए

    सुन्दर रचना

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  10. ladkiya kabhi kabhi bhram mai zindgi jiti hai
    aur yahi bhram tut jaye to ansu behtey hain

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