मैं चाहती हूँ
सोचती हूँ दूर कहीं जंगल में
घनघोर घटाओं से आच्छादित
व्योम तले बैठ नयनों में समेट
उस सौंदर्य को
अपने मन में छुपा लूं
और उसी में खो जाऊं |
यह भूल जाऊं कि मैं क्या हूँ
मेरा जन्म किस लिए हुआ
इस घरा पर आने का
उद्देश्य पूरा हुआ या अधूरा रहा |
बस अपने आस पास
प्रकृति का वरद हस्त पा
मन की चंचलता से
बेचैनी से कहीं दूर जा
एक नए आवरण से
खुद को ढका पाऊँ |
सताए ना भूख प्यास
ना ही रहूँ कभी उदास
चिंता चिता ना बन जाए
केवल हो चित्त शांत
खुलें अंतर चक्षु व मुंह से निकले
है यही जीवन का सत्व
बाकी है सब निरर्थक |
मधुर कलरव पक्षियों का
चारों ओर छाए हरियाली
हो कलकल करती बहती जल धारा
उसी में खो जाऊं |
हर ऋतु का अनुभव करू
आनंद लूं
एकाकी होने के दुख से
दूर रहूँ सक्षम बनूँ
दुनियादारी से दूर बहुत
सुरम्य वादियों में खो जाऊं
वहीँ अपना आशियाना बनाऊँ |
आशा
very beautiful mam !!
जवाब देंहटाएंI have also written about nature in one of my poem.
http://jyotimi.blogspot.com/2011/03/countryside.html
बहुत भावपूर्ण ....प्रकृति का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है..रचना एक दूसरी दुनियां में ही ले जाती है..आभार
जवाब देंहटाएंहर ऋतु का अनुभव करू
जवाब देंहटाएंआनंद लूं
एकाकी होने के दुख से
दूर रहूँ सक्षम बनूँ
दुनियादारी से दूर बहुत
सुरम्य वादियों में खो जाऊं
वहीँ अपना आशियाना बनाऊँ |
भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
मेरी बहुत इच्छा रहती है, कुदरत की गोद में जाने की,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना!
जवाब देंहटाएंतथास्तु ! जहाँ आप अपना आशियाना बनाना चाहती हैं वहाँ उसी आशियाने में एक कक्ष मेरे लिये भी सुरक्षित रख लीजियेगा ! इतने सुन्दर मनोरम वातावरण में कौन रुकना नहीं चाहेगा ! बहुत सुन्दर रचना ! मन को चंचल कर गयी !
जवाब देंहटाएंएकाकी होने के दुख से
जवाब देंहटाएंदूर रहूँ सक्षम बनूँ
एकाकी होने की अनुभूति है सब से बड़ा दुख है, बस उसी से हमें बचना चाहिए| एक और सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें|
itna sunder ashiyana ho to, aur chhiye hi kya!!!
जवाब देंहटाएंखुलें अंतर चक्षु व मुंह से निकले
जवाब देंहटाएंहै यही जीवन का सत्व
बाकी है सब निरर्थक
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार
अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|