07 जून, 2011

वास्तविकता कोयल की


जैसे ही ग्रीष्म ऋतु आई

जीवों में बेचैनी छाई

वृक्ष आम के बौरों से लदे

आगई बहार आम्र फल की |

पक्षियों की चहचाहट

कम सुनने को मिलती थी

मीठी तान सुनाती कोयल

ना जाने कहाँ से आई |

प्रकृति सर्वथा भिन्न उसकी

रात भर शांत रहती थी

होते ही भोर चहकती थी

उसकी मधुर स्वर लहरी

दिन भर सुनाई देती थी |

जब पेड़ पर फल नहीं होंगे

जाने कहाँ चली जाएगी

मधुर स्वर सुनाई न दे पाएंगे

वातावरण में उदासी छाएगी |

दिखती सुंदर नहीं

कौए जैसी दिखती है

पर मीठी तान उसकी

ध्यान आकर्षित करती है |

घर अपना वह नही बनाती

कौए के घोसले में चुपके से

अंडे दे कर उड़ जाती

वह जान तक नहीं पाता |

ठगा जाता नहीं पहचानता

ये हैं किसके ,उसके अण्डों के साथ

उन्हें भी सेता बड़े जतन से

गर्मीं दे देखभाल करता |

बच्चे दुनिया में आ, बड़े होते

जब तक वह यह जानता

वे उसके नहीं हैं

तब तक वे उड़ चुके होते |

कहलाता कागा चतुर

फिर भी ठगा जाता है

है अन्याय नहीं क्या ?

कोयल का रंग काला

पर है मन भी काला

कौए सा चालाक पक्षी भी

उससे धोखा खा जाता |

आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. क्या जाने कोयल का मन काला होता है या बेघर होने के कारण यह उसकी विवशता होती है ! शायद इसी रूप में उसे ईश्वरीय सहायता मिल जाती है ! अपना अपना नज़रिया है ! अच्छी रचना ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रकृति के रंगों से ओतप्रोत कविता

    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बिलकुल सच लिखा है आपने.....


    मुझे मेरे नवगीत का एक बंद याद आ रहा है ....'कोयल मृदुबैनी है तन मन की काली

    कौए से करवाती शिशु की रखवाली

    छलनाओं के कर में सपनों का दरपन

    आने को आया है मौसम मनभावन

    जवाब देंहटाएं
  4. koyal kali kaga kala par jab vsnt aati hai to khul jata hai bhed .

    जवाब देंहटाएं
  5. बेचारा भोला भाला कागा - ही डीजर्व्ड इट

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: