04 जून, 2011

ये अश्रु


ये अश्रु हैं हिम नद से
यूँ तो जमें रहते हैं
पर थोड़ी ऊष्मा पाते ही
जल्दी से पिघलने लगते हैं |
ले लेते रूप नदी का
कभी बाढ भी आती है
तट बंध तोड़ जाती है
जाने कितने विचारों को
साथ बहा ले जाती है |
तब जल इतना खारा होता है
विचारों के समुन्दर से मिल कर
साथ साथ बह कर
थी वास्तविकता क्या उसकी
यह तक याद नहीं रहता |
अश्रु हैं इतने अमूल्य
व्यर्थ ही बह जाना इनका
बहुत व्यथित करता है
बिना कारण आँखों का रिसाव
मन पर बोझ हो जाता है |
आशा





8 टिप्‍पणियां:

  1. अश्रु हैं इतने अमूल्य
    व्यर्थ ही बह जाना इनका
    बहुत व्यथित करता है
    बिना कारण आँखों का रिसाव
    मन पर बोझ हो जाता है |
    sunder abhivyakti .

    जवाब देंहटाएं
  2. ये अश्रु पूरी तरह से निजी धरोहर होते हैं ये मन की तिजोरी में बंद रहें वही उचित है ! किसीके सामने इन्हें प्रदर्शन के लिये निकालना भी नहीं चाहिये ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. अश्रु हैं इतने अमूल्य
    व्यर्थ ही बह जाना इनका
    बहुत व्यथित करता है
    सुन्दर रचना !!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. अश्रु हैं इतने अमूल्य
    व्यर्थ ही बह जाना इनका
    बहुत व्यथित करता है
    बिना कारण आँखों का रिसाव
    मन पर बोझ हो जाता है |

    रचना बहुत बढ़िया लिखी है आपने!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. अश्रु हैं इतने अमूल्य
    व्यर्थ ही बह जाना इनका
    बहुत व्यथित करता है

    बहुत सही बात कही है आपने दीदी

    जवाब देंहटाएं
  6. सच में ... नेह की थोड़ी सी आँच पा कर ये आँसू पिघल जाते हैं ... बहुत भाव पूर्ण रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर...अति सुन्दर आशाजी ....
    ---कोइ कहता आंसू हैं ये,
    कोइ कहता खारा पानी...

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: