सारी सत्ता सारा बैभव
यहीं छूट जाता है
बस यादे रह जाती हैं
व्यक्तित्व की छाप की |
आकर्षण उनका भी
उन लोगों तक ही
सिमट जाता है
यदि कोई काम
उनका किया हो
या कोई अहसान
उन पर किया हो |
कुछ लोग ऐसे भी हैं
होता कोई न प्रभाव जिन पर
जैसे ही काम निकल जाता है
रास्ता तक बदल जाता है |
कहीं कुछ भी होता रहे
अनजान बने रहते हैं
भूले से भी यदि
पहुंच गये
तटस्थ भाव
अपना लेते हैं
जैसे पह्चानते ही न हों |
क्यूँ कि संवेदनाएं
मर गई हैं
वे तो वर्तमान में जीते हैं
कल क्या होगा
नहीं सोचते |
यदि दुनिया के सितम
बढ़ गए
उन्हें कंधा कौन देगा
उनके दुःखों को
बांटने के लिए |
आशा
बहुत सार्थक और सटीक
जवाब देंहटाएंअद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
आज की स्वार्थी दुनिया की सोच पर लिखी अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक और सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ,बहुत सार्थक और सटीक
जवाब देंहटाएंवर्तमान युग की व्यक्तिवादी सोच पर करारा प्रहार किया है ! बहुत सटीक एवं सशक्त रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder bhav liye saarthak ,satic aur shaandaar rachanaa.badhaai sweekaren.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks.
sahi kaha aapane
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