जब से तेरी तस्वीर सीने से लगाई है
दिल पर अधिकार न रहा
उसकी धडकन कभी धीमीं
तो कभी तेज हो जाती है
तस्वीर कभी रंगीन तो कभी रंग हीन
नजर आती है |
उससे निकली आवाज कभी ताल में
तो कभी बेताल हो जाती है
यह कहीं मेरे अंतर्मन में उठते
विचारों का सैलाव तो नहीं
जो मुझे बहा ले जाता है |
जब भी मैं खुश होता हूँ
उस पर भी खुशी झलकती है
देख कर मेरी उदासी
वह गम के साये में खो जाती है
बहुत उदास नजर आती है |
तू जाने किस अन्धकार में खो गई
पर मन में इस तरह बस गई
जहां भी नजर पडती है
तेरी याद आ जाती है
दिल की धड़कन बढ़ जाती है
यह कहीं मेरा भ्रम तो नहीं
तू जीती जागती
सजीव नजर आती है |
ऐसे ही अगर जीना है
हम यह भी सह लेंगे
कोई गिला शिकवा न करेंगे
किसी सहारे की दरकार नहीं है
बस इसी तरह जी लेंगे |
आशा
दिल की कसक को बखूबी बयां करती संवेदी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंदिल पर अधिकार न रहा
जवाब देंहटाएंउसकी धडकन कभी धीमीं
तो कभी तेज हो जाती है
तस्वीर कभी रंगीन तो कभी रंग हीन
नजर आती है |
दिल की कशमकश को बड़ी संजीदगी से बयाँ किया है.
बस इसी तरह जी लेंगे. उत्तम भावों के साथ प्रस्तुत उत्कृष्ट रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर....
दर्द की बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति की है ! मन के भावों को बखूबी संजोया है ! बधाई एवं शुभकामनायें ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंभावमय प्रव्स्तुति, जीने के लिये बस यही सोचना कहना पडता है--- शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढने के बाद दिल में एक हलचल सी महसूस होने लगी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
---सुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंशिकवा गिला भी श्याम उनसे
क्या करें कैसे करें|
दिल तो उनके पास है
कोई करे कैसे करे ||
इस पर अपनी गज़ल याद आ गयी उसमे से चंद शेर---
जवाब देंहटाएंकुछ पा लिया कुछ खो लिया
फिर बेतहाशा रो लिया
आँसू गिरे जब आँखो से
तो ज़ख्म दिल का धो लिया
फिर भी हुयी मुश्किल अगर
आँचल मे माँ की सो लिया
दुश्वारियों का बोझ भी
जैसे हुया बस ढो लिया
बेकार कर दी ज़िन्दगी
बस खा लिया फिर सो लिया
कहे भी किससे कोई अपना दर्द सब अपने अपने दुख सुख मे मशगूल हैं ।ाधिकतर लोग तो केवल तमाशा देखने के लिये ही होते हैं अच्छा है अपना दुख अपने तक ही रखें।