06 जुलाई, 2011

ग़म




अपने ग़मों के साथ

कई ग़म और लिये फिराता हूँ

देता हूँ तसल्ली उनको

खुद उन्हीं में डूबा रहता हूँ |

नहीं चाहता छुटकारा उनसे

वे हमराज हैं मेरे

हम सफर हैं जिंदगी के

जाने अनजाने आ ही जाते हैं

स्वप्नों को भी सजाते हैं |

हद तो जब हो जाती है

जाने कब चुपके से

मेरे मन में उतर जाते हैं

मन में बसते जाते हैं |

अब तो बिना इनके

अधूरी लगती है जिंदगी

क्यूँ कि खुशी तो

क्षणिक होती है |

इनका अहसास ही जताता है

दौनों में है अंतर क्या

इन्हीं से सीख पाया है

धबरा कर जीना क्या |

अब जहां कहीं भी जाएँ

बचैनी नहीं होती

क्यूँ कि साथ जीने की

आदत सी हो गयी है |

खुशियों की झलक होती मुश्किल

हैं मन के साथी ग़म

सदा साथ रहते हैं

बहते दरिया से होते हैं |

14 टिप्‍पणियां:

  1. खुशियों की झलक होती मुश्किल

    हैं मन के साथी ग़म

    सदा साथ रहते हैं
    बहते दरिया से होते हैं |

    बिलकुल सही ..गम को अपनाकर ही जीवन चलता है ...
    सार्थक रचना ....

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  2. वे हमराज हैं मेरे

    हम सफर हैं जिंदगी के

    जाने अनजाने आ ही जाते हैं

    स्वप्नों को भी सजाते हैं |

    हद तो जब हो जाती है

    जाने कब चुपके से

    मेरे मन में उतर जाते हैं

    मन में बसते जाते हैं |
    waah

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  3. आपका लेख आजके चर्चामंच की शोभा बढ़ा रहा है
    धन्यवाद

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  4. गम में जो जीवन तलाश ले ... खुशियाँ ढूंढ ले वही विजेता है ...

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  5. gam apane aap ko khojane main madad karte hain

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  6. बेहतरीन रचना ! बहुत सुन्दर ! मन पर गहरा असर कर गयी ! बधाई !

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है!

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  8. मन के साथी गम,
    सदा साथ रहते हैं
    बहते दरिया से होते हैं

    सही कहा है आशा जी

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  9. मन के साथी गम,
    सदा साथ रहते हैं
    बहते दरिया से होते हैं

    बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  10. सुख-दुख जीवन में लगा ही रहता है, तारीफ़ तो उसकी है जो दुख में भी प्रसन्न रहे।

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