तुम भूले वे वादे
जो रोज किया करते थे
बातें अनेक जानते थे
पर अनजान बने रहते थे |
तुम्हारी वादा खिलाफी
अनजान बने रहना
बिना बाट रूठे रहना
बहुत क्रोध दिलाता था |
फिर भी मन के
किसी कौने में
तुम्हारा अस्तित्व
ठहर गया था |
बिना बहस बिना तकरार
बहुत रिक्तता लगती थी
तुमसे बराबरी करने में
कुछ अधिक ही रस आता था |
वह स्नेह और बहस
अंग बन गए थे जीवन के
रिक्तता क्या होती है समझी
जब रास्ते अलग हुए |
बरसों बाद जब मिले
बातें करने की
उलाहना देने की
फिर से हुई इच्छा जाग्रत |
जब तुम कल पर अटके
कसमों वादों में उलझे
तब मैं भी उन झूठे बादों की
याद दिलाना ना भूली |
पर आज भी वही बात
ऐसा मैंने कब कहा था |
यह तो तुम्हारे,
दिमाग का फितूर था |
आशा
यह तो तुम्हारे,
जवाब देंहटाएंदिमाग का फितूर था |...:)
wah asha di....sach much aapke har kavita se alag soundhi si khushoo aati hai!
bahut sunder
जवाब देंहटाएंaap bhi aaiye
naaz
कसमों वादों में उलझे
जवाब देंहटाएंतब मैं भी उन झूठे बादों की
याद दिलाना ना भूली |
पर आज भी वही बात
ऐसा मैंने कब कहा था |
यह तो तुम्हारे,
दिमाग का फितूर था |
मन की सीधी बात सरल और सहज शब्दों व्यक्त कर दी है ...
ऐसा मैंने कब कहा था |
जवाब देंहटाएंयह तो तुम्हारे,
दिमाग का फितूर था
sahaj aur saral abhivyakti, badhai
sahjta se dil ke bhavo ko shabd de diye.
जवाब देंहटाएंKya bholapan hai..sundar rachana ..aabhar
जवाब देंहटाएंKya bholapan hai..sundar rachana ..aabhar
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता आशा जी....
जवाब देंहटाएंआशा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इंसानी फितरतों को बड़ी खूबी से शब्दों में बाँधा है ! बहुत कुछ कने के बाद लोग यही कह कर परे हो जाते हैं !
जवाब देंहटाएंऐसा मैंने कब कहा था |
यह तो तुम्हारे,
दिमाग का फितूर था |
सुन्दर एवं सार्थक रचना ! बधाई !
तुमसे बराबरी करने में
जवाब देंहटाएंकुछ अधिक ही रस आता था ............
निश्छल और सपाट अभिव्यक्ति| सुंदर शब्दांकन|
बेहतर है मुक़ाबला करना
अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.
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