09 जुलाई, 2011

कांटा गुलाब का



तू गुलाब का फूल
मैं काँटा उसी डाल का
है तू प्रेम का प्रतीक
और मैं उसकी नाकामी का |
दौनों के अंतर को
पाटा नहीं जा सकता
है इतनी गहरी खाई
कोइ पार नहीं कर पाता|
फिर भी तुझे पाने की आशा
हर व्यक्ति को होती है
मुझे देख भय लगता है
कभी विरक्ति भी होती है |
गुलाब तुझे पता नहीं
मैं दुश्मन प्रेम का नहीं
तेरे पास रहता हूँ
तुझे बचाने के लिए |
 चाहता हूँ यही
खुशबू तेरी बनी रहे
प्रेम का प्रतीक तू
ऐसा ही सदा ही बना रहे |
आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत कविता.... कांटे के बारे में नए तरह का विचार

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  2. रफीकों से रकीब अच्छे हैं जो जल कर नाम लेते हैं
    गुलों से खार अच्छे हैं जो दामन थाम लेते हैं !
    काँटों की ओर से उनकी मन:स्थिति का मार्मिक चित्रण किया है ! अति सुन्दर ! बधाई !

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  3. बहुत सुन्दर रचना ... कांटे न होते तो गुलाब सुरक्षित कैसे रहता ...

    @ साधना जी ,
    सटीक अशआर कहा है ..

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  4. कांटे के महत्व को दर्शाती सुंदर कविता।

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  5. फूल और काँटों का साथ,
    यही तो है जीवन की सौगात!

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  6. सच है ... कंटें न होँ तो गुलाब डाली पर देर तक नहीं रह पायेगा ... अच्छी कल्पना है ..

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  7. काँटों की ओर से उनकी मन:स्थिति का मार्मिक चित्रण|खूबसूरत कविता|

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  8. खूबसूरत भाव चित्रण ...शुभकामनायें आपको !

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  9. अद्भुत खूबसूरत रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

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  10. सच्चे प्यार का प्रतीक...वो कांटा ....जिसे पूर्ण अभिव्यक्ति के साथ लिखा गया .......बहुत खूब

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