09 अगस्त, 2011

रक्षा बंधन बचपन का

जाने कितनी रिक्तता
है आज ह्रदय में
आँखें धुंधलाने लगी हैं
बीते दिन खोजने में |
प्रति वर्ष आता रक्षा बंधन
उसे खोजती रह जाती
फिर अधिक उदास हो जाती |
भूल नहीं पाती बीता कल
जाने कब बीत गया बचपन
वह उल्लास वह उत्साह
जाने कहाँ गया |
जब रंगबिरंगी राखी की
दुकानों पर पडती नजर
याद आती हैं वे गुमटियां
जो पहले सजा करती थीं |
घंटों बीत जाते थे
एक राखी खोजने में खरीदने में
जो भैया के मन भाए
पा कर खुशी से झूम जाए |
सुबह जल्दी उठ जाती
नए कपडे पहन तैयार होती
थाली सजाती दिया लगाती
घेवर और फैनी लाती |
टीका लगा आरती करती
राखी बाँध मुंह मीठा कराती
जैसे ही वह पैर छूता
मन मयूर दुआ देता |
जब एक रुपया
उपहार मिलता
बड़े जतन से उसे सहेजती
आज यह सब कहाँ |
ना भाई है न स्नेह उसका
बस रह गयी
यादें सिमिट कर
हृदय के इक कौने में |

आशा



13 टिप्‍पणियां:

  1. अब यादें ही बाकी हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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  2. दिल के एहसासों के साथ अच्छी प्रस्तुति ...
    राखी का ये त्यौहार ...यादे है सबकी ...सबको दिल से मुबारक हो

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  3. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  4. मन को भिगोती और दुःख के तारों को छेड़ती मर्मस्पर्शी रचना ! दादा जहाँ हों ईश्वर की पनाह में हों यही कामना है ! यह त्यौहार हमेशा मन में अकथनीय पीड़ा और कसक लेकर आता है !

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  5. यादों के झरोके से सजी .....ये सुन्दर रचना बहुत खूब .

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  6. सुन्दर अहसासों से सजी प्यारी सी रचना........

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  7. बहुत सुंदर रचना....एक-एक शब्द भावपूर्ण ...

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  8. बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  9. भूल नहीं पाती बीता कल
    जाने कब बीत गया बचपन
    वह उल्लास वह उत्साह
    जाने कहाँ गया |
    जब रंगबिरंगी राखी की
    दुकानों पर पडती नजर
    याद आती हैं वे गुमटियां
    जो पहले सजा करती थीं
    ..sach bachpan ke dinon kee baat hi alag hoti hai..
    bahut badiya bhav liye sundar prastuti ke liye aabhar..

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