है पुरानी नैया
नया है खिवैया
आगे बढ़ना न चाहे
साँसें तक रुकती जाएँ |
हिचकोले खाए डगमगाए
रुकना चाहे
आगे बढ़ ना पाए
लगता नहीं आसान
उस पार जाना |
देख पवन का वेग
मस्तूल खींचना चाहे
पर पतवार का वार
उसे लौटा लाए |
है अजब संयोग
सरिता के संग
वो जाने का मन बनाए |
नहीं चाहती कोइ खिवैया
ना ही मस्तूल कोइ
बस चाहती है
मुक्त होना बंधन से |
काट कर सारे बंधन
जाना चाहती दूर बहुत
जहां कोइ खिवैया न हो
बस वह हो और उसकी तन्हाई |
आशा
बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर रचना....बस वह हो और उसकी तन्हाई!
जवाब देंहटाएंbahut sunder.....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति,बधाई ,मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! सुन्दर भाव एवं बेहतरीन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंbest
जवाब देंहटाएंबस वह हो और उसकी तन्हाई ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
लाजवाब प्रस्तुति ......बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंbhaut hi sundar...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति....मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंsathi mil jaye to raah aasan ho jati hai.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
आप को हैप्पी फ्रेंड शिप डे
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्तिथि हमारे ब्लॉग पर देख कर बहुत खुसी हुई
धन्यवाद