05 अगस्त, 2011

प्रकृति से छेड़छाड़


हो रही धरती बंजर
उभरी हैं दरारें वहाँ
वे दरारें नहीं केवल
है सच्चाई कुछ और भी
रो रहा धरती का दिल
फटने लगा आघातों से
वह सह नहीं पाती
भार और अत्याचार
दरारें तोड़ रही मौन उसका
दर्शा रहीं मन की कुंठाएं
क्या अनुत्तरित प्रश्नों का हल
कभी निकल पाएगा
प्रकृति से छेड़छाड़ की
सताई हुई धरा
है अकेली ही नहीं
कई और भी हैं
हर ओर असंतुलन है
जो जब चाहे नजर आता है
झरते बादल आंसुओं से
बूंदों के संग विष उगलते
हुआ प्रदूषित जल नदियों का
गंगा तक न बच पाई इससे
कहीं कहर चक्रवात का
कहीं सुनामी का खतरा
फिर भी होतीं छेड़छाड़
प्रकृति के अनमोल खजाने से
हित अहित वह नहीं जानता
बस दोहन करता जाता
आज की यही खुशी
कल शूल बन कर चुभेगी
पर तब तक
बहुत देर हो चुकी होगी |
आशा

17 टिप्‍पणियां:

  1. झरते बादल आंसुओं से

    बूंदों के संग विष उगलते

    हुआ प्रदूषित जल नदियों का

    गंगा तक न बच पाई इससे |

    kharaa sach yahee hai

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  2. बरबाद करने की होड़ मची है। वंशजो की थाती बेच मन नही भरता फ़िर भी हर दिन एक नया लोश लिये फ़िर लूटने निकल पड़ते हैं।

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  3. पर्यावरण के संरक्षण के लिये चेताती एक अद्भुत रचना !

    हित अहित वह नहीं जानता

    बस दोहन करता जाता |

    आज की यही खुशी

    कल शूल बन कर चुभेगी

    पर तब तक

    बहुत देर हो चुकी होगी |

    विचारणीय पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर !

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  4. सार्थक और सटीक प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. झरते बादल आंसुओं से
    बूंदों के संग विष उगलते
    हुआ प्रदूषित जल नदियों का
    गंगा तक न बच पाई इससे |

    गहन सोच साझा करती सुंदर कविता

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  7. आज की यही खुशी
    कल शूल बन कर चुभेगी
    पर तब तक
    बहुत देर हो चुकी होगी |


    सोदेशात्मक जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  8. आज की यही खुशी
    कल शूल बन कर चुभेगी
    पर तब तक
    बहुत देर हो चुकी होगी |

    bahut sarthak rachna

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  9. सही चिंता है आपकी ...अगर अभी भूल न सुधारी तो वक्त के साथ पछतावा होगा !
    शुभकामनायें !

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  10. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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