बहुत कुछ छिपा है ह्रदय में
जैसे चिंगारी दबी हो राख में
घुटन सी रहती है
बेचैनी बनी रहती है |
कुछ सच का कुछ झूठ का
हर वक्त बोझ दिल पर
बढता ही जा रहा
बेबात उलझाता जा रहा |
कब तक दबूं
उस अहसास से
जो चाहता कुछ और है
पर हो जाता कुछ और |
अच्छे और बुरे दिनों ने
बहुत कुछ सिखाया है
बदलाव इस जीवन में
कुछ तो आया है |
मन की किस से कहूँ
अवकाश ही नहीं किसी को
मुझे सुनने के लिए
समस्या समझने के लिए |
अब खिंच रही है जिंदगी
बिना किसी उद्देश्य के
बोझ कम होने का
नाम नहीं लेता |
उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
कोइ राह नहीं दिखती
यह तक सोच नहीं पाता
होगा क्या परिणाम इसका |
आशा
gahan bhavon ki sundar abhivyakti .
जवाब देंहटाएंblog paheli
कोमल कविता... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
कोइ राह नहीं दिखती
यह तक सोच नहीं पाता
होगा क्या परिणाम इसका |
बहुत खूब ........सच बताती आपकी ये रचना
बहुत सुन्दर और सामयिक रचना लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंमन को छु लेने वाली ये सुन्दर रचना ....
जवाब देंहटाएंइतना बोझ दिल पर लाद कर रखने की ज़रूरत ही क्या है ! पल भर में उतार फेंकिये और मन हल्का कर लीजिए ! मन के विचलन को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है ! बहुत अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंदिल पे जब बोझ होता है उतारना मुश्किल ही होता है ... उम्दा रचना ....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंएक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो
aadarneeya aashaji,
जवाब देंहटाएंअवकाश ही नहीं किसी को
मुझे सुनने के लिए
समस्या समझने के लिए |
अब खिंच रही है जिंदगी
बिना किसी उद्देश्य के
बोझ कम होने का
नाम नहीं लेता |
उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
कोइ राह नहीं दिखती
यह तक सोच नहीं पाता
होगा क्या परिणाम इसका |
bahut khoob likha aapne jindagee ke bare.
lekin kyun yun nirash hain aap?
bhool gaee aap geeta me bhagwan srikrishanaji
ne kya kaha tha "karm par hi tumara adhikar hai
fal ki icha mat karo" to bas karm kiye jao,
aur ashaji! jeevan ka katu satya to paramanand swaroop parmatma ko pana hai..ana -jana to sirf ik bahana hai.......aapka abhar.