जान न पाया कहाँ से आई
ओर हों कौन ओ अजनवी
जाने कब तुम्हारा आना
मेरे जीने का बहाना हों गया |
ये सलौना रूप और पैरहन
और आहट कदमों की
छिप न पाये हजारों में
ले चले दूर बहारों में |
दिल में हुई हलचल ऐसी
सम्हालना उसे मुश्किल हुआ
हर शब्द जो ओंठों से झरा
हवा में उछला फिज़ा रंगीन कर गया |
हों तुम पूरणमासी
या हों धुप सुबह की
साथ लाई हों महक गुलाब की
तुम्ही से गुलशन गुलजार हों गया |
चहरे का नूर और अनोखी कशिश
रंगीन इतनी कि
रौशनी का पर्याय हों गयी |
दिल में कुछ ऐसे उतारी
गहराई तक उसे छु गयी
वह काबू में नहीं रहा
कल्पना में खो गया |
आशा
ओर हों कौन ओ अजनवी
जाने कब तुम्हारा आना
मेरे जीने का बहाना हों गया |
ये सलौना रूप और पैरहन
और आहट कदमों की
छिप न पाये हजारों में
ले चले दूर बहारों में |
दिल में हुई हलचल ऐसी
सम्हालना उसे मुश्किल हुआ
हर शब्द जो ओंठों से झरा
हवा में उछला फिज़ा रंगीन कर गया |
हों तुम पूरणमासी
या हों धुप सुबह की
साथ लाई हों महक गुलाब की
तुम्ही से गुलशन गुलजार हों गया |
चहरे का नूर और अनोखी कशिश
रंगीन इतनी कि
रौशनी का पर्याय हों गयी |
दिल में कुछ ऐसे उतारी
गहराई तक उसे छु गयी
वह काबू में नहीं रहा
कल्पना में खो गया |
आशा
अति सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंdineshkidillagi.blogspot.com
रौशनी का पर्याय हों गयी |
जवाब देंहटाएंदिल में कुछ ऐसे उतारी
गहराई तक उसे छु गयी
वह काबू में नहीं रहा
कल्पना में खो गया |bhaut hi sundar....
रौशनी का पर्याय हों गयी
जवाब देंहटाएंदिल में कुछ ऐसे उतारी
गहराई तक उसे छु गयी
वह काबू में नहीं रहा
कल्पना में खो गया
बहुत ही बढ़िया
सादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंचहरे का नूर और अनोखी कशिश
जवाब देंहटाएंरंगीन इतनी कि
रौशनी का पर्याय हों गयी |
बेहतरीन शब्द चयन और बहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंअजनबी का कल्पना में उतरना प्रभावित कर गया. बधाई आशा जी.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंहों=हो
lajawab
जवाब देंहटाएंbahut badhia
shandar
वाकई गहराई तक छू गई....
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