30 सितंबर, 2011

विनती


माँ का हो आशीष शीश पर
छत्रछाया हो उसकी
उसे यहाँ फिर हो भय कैसा
तू करती रक्षा जिसकी |
तेरी जोत जलाने आई
कहना पाई तुझ से
तेरी महिमा जान न पाई
हुआ मगन मन कब से |
आजा माँ मेरे अंगना में
हूँ बहुत अकिंचन सी
देना आशीष मुझे ऐसा
बस हो जाऊं तुलसी

आशा |


11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर आरती| जय माता की..

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  2. जय माता दी....

    सुंदर प्रस्‍तुति....

    नवरात्रि की शुभकामनाएं.......

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  3. बहुत ही अच्छी आरती
    जय माता की

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  4. यद्यपि करना है सही .......ईश्वर का गुणगान....
    पर इससे भी उचित है......तू खुद को पहचान......
    तू खुद को पहचान.........दुखी फिरते नर नारी..
    ईश्वर काफी नहीं कस्ट ......वो हरे हमारी.....
    कह मनोज प्रतिदिवस ही ....हो ईश्वर की जीत.....
    दुखियो की सेवा करो........गूंजेगा संगीत.....

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  5. बहुत भावपूर्ण शब्दों में माता की वन्दना की है ! नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें ! वरदायिनी माँ सबका कल्याण करें यही मंगलकामना है !

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  6. सुन्दर उदगार.
    नवरात्रि की शुभकामनाएं..

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  7. सुन्दर!
    नवरात्रि की शुभकामनाएं!

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