भुलाए कैसे बीतें पलों को
जीवन में लगे ग्रहण को
पहले न था अवरोध कहीं
थी जिंदगी भी सरल कहीं |
परिवेश बदला वह बदली
पर समायोजन न कर पाई
होता संघर्ष ही जीवन
यह तक न जान पाई |
नितांत अकेली रह गयी
अन्तरमुखी होती गयी
उचित सलाह न मिल पाई
विपदाओं में घिरती गयी |
रोज की तकरार में
आस्था डगमगा गयी
हर बार की तकरार में
मन छलनी होता गया |
माना न खोला द्वार उसने
बंद किया खुद को कमरे में
क्या न था अधिकार उसको
लेने का स्वनिर्णय भी |
आज है सक्षम सफल
फिर भी घिरी असुरक्षा से
कभी विचार करती रहती
शायद है उसी में कमीं |
विपरीत विचारों में खोई
समझ न पाई आज तक
चूमती कदम सफलता बाहर
निजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
जीवन में लगे ग्रहण को
पहले न था अवरोध कहीं
थी जिंदगी भी सरल कहीं |
परिवेश बदला वह बदली
पर समायोजन न कर पाई
होता संघर्ष ही जीवन
यह तक न जान पाई |
नितांत अकेली रह गयी
अन्तरमुखी होती गयी
उचित सलाह न मिल पाई
विपदाओं में घिरती गयी |
रोज की तकरार में
आस्था डगमगा गयी
हर बार की तकरार में
मन छलनी होता गया |
माना न खोला द्वार उसने
बंद किया खुद को कमरे में
क्या न था अधिकार उसको
लेने का स्वनिर्णय भी |
आज है सक्षम सफल
फिर भी घिरी असुरक्षा से
कभी विचार करती रहती
शायद है उसी में कमीं |
विपरीत विचारों में खोई
समझ न पाई आज तक
चूमती कदम सफलता बाहर
निजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
जीवन के अनुभवों को शब्दों से बहुत भावमय बना दिया। कुछ बातें हम समझ नही पाते और कुछ समझ कर भी समझना नही चाहते। बस यही जीवन है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंbahut badi samasya ko mukhar kar diya aapne is kavita ke madhyam se.......bahot sunder......
जवाब देंहटाएंजीवन संघर्ष की दास्तान!
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर कविता... अंतिम पंक्तियाँ उद्वेलित कर देती हैं...
जवाब देंहटाएंभावभरी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंविपरीत विचारों में खोई
जवाब देंहटाएंसमझ न पाई आज तक
चूमती कदम सफलता बाहर
निजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
बढिया भावाभिव्यक्ति !!
बहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने हेतु हार्दिक आभार|
विपरीत विचारों में खोई
जवाब देंहटाएंसमझ न पाई आज तक
चूमती कदम सफलता बाहर
निजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
गंभीर चिंतन ... ऐसा ही कभी कभी मुझे भी लगता है ..
bahut khubsuart bhavanjali...
जवाब देंहटाएंचूमती कदम सफलता बाहर
जवाब देंहटाएंनिजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
नारी जीवन की विडम्बना का सशक्त चित्रण्।
नारी जीवन की विसंगतियों को सशक्त रूप से उजागर किया है आपने इस रचना में ! गहन, गंभीर एवं अंदर तक उद्वेलित करती एक बेहतरीन अभिव्यक्ति ! बधाई !
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की कशमकश ......बहुत गहन
जवाब देंहटाएंगंभीर चिंतन... सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
विपरीत विचारों में खोई
जवाब देंहटाएंसमझ न पाई आज तक
चूमती कदम सफलता बाहर
निजि जीवन में ही असफल क्यूँ ?
...गहन चिंतन...एक सटीक प्रश्न उठाती सार्थक अभिव्यक्ति..आभार
बहुत सही प्रश्न उठाया है आशा जी आपने अपने इस रचना के माध्यम से ..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार
मेरी नई पोस्ट के लिये पधारे स्वागत है..
www.mknilu.blogspot.com
सदस्य बन रहा हू
An unanswered question ...beautifully expressed.
जवाब देंहटाएंशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!