02 नवंबर, 2011

मीत बावरा

है मीत ही बावरा उसका ,निमिष में घबरा गया
पाया न सामने जब उसको ,भावना में बह गया |

थी बेचैन
निगाहें उसकी ,ना ही धरा पैरों तले
जाने कब तक यूं ही भटका , न पाया जब तक उसे |

भागा हुआ वह गया अपनी ,प्रियतमा की खोज में
पा दूर से ही झलक उसकी ,ठंडक आई सोच में |

आया नियंत्रण साँसों पर , आहट पाकर उसकी
मुस्कानों में खो गया , थी वह जन्नत उसकी |
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. चलिए उसकी घबराहट और चिंता समाप्त तो हुई ! उसे जन्नत मिल गयी हमें भी चैन आ गया ! सुन्दर रचना !

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.


    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  3. पा दूर से हे झलक उसकी ठंडक आई सोच में वाह !! बहुत सुंदर भाव
    .समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  4. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति बधाई .....

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