13 नवंबर, 2011

वे दिन

वे दिन वे ही रातें
सोती जगती हंसती आँखें
तन्हाई की बरसातें
जीवन की करती बातें |
सुबह की गुनगुनी धूप ने
पैर पसारे चौबारे में
हर श्रृंगार के पेड़ तले
बैठी धवल पुष्प चादर पर
लगती एक परी सी |
थे अरुण अधर अरुणिम कपोल
मधुर
मदिर मुस्कान लिए
स्वप्नों में खोई हार पिरोती
करती प्रतीक्षा उसकी |
कभी होती तकरारें
सिलसिले रूठने मनाने के
कई यत्न प्यार जताने के
जिसे समीप पाते ही
खिल उठाती कली मन की |
वे दिन लौट नहीं पाते
बस यादें ही है अब शेष
कभी जब उभर आती है
वे दिन याद दिलाती हैं |
आशा




16 टिप्‍पणियां:

  1. वे दिन वे ही रातें
    सोती जगती हंसती आँखें
    तन्हाई की बरसातें
    जीवन की करती बातें |
    har man ko
    yaad aatee

    bahut achhee rachnaa

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  2. mam bahut hi badhiya rachna,
    bas yaaden hi rah jati hain..
    jai hind jai bharat

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  3. कभी होती तकरारें
    सिलसिले रूठने मनाने के
    कई यत्न प्यार जताने के
    जिसे समीप पाते ही
    खिल उठाती कली मन की |

    बीते दिनों की यादें तो हैं ..ये यादें ही ज़िंदगी को आसान बना देती हैं .

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  4. आपकी प्रस्तुति

    सोमवारीय चर्चा-मंच पर

    charchamanch.blogspot.com

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  5. बेहतरीन रचना ! हर शब्द एक सुन्दर तस्वीर को उभारता सा लगता है ! दार्जिलिंग के प्राकृतिक सौंदर्य का जादू रचना पर भी छाया लग रहा है ! सुन्दर रचना के लिये बधाई !

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  6. यादें सुंदरता से चित्रित हुई हैं!

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  7. हर याद के साथ वो पल भी आ जाता है.

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  8. "सुबह की गुनगुनी धूप ने
    पैर पसारे चौबारे में
    हर श्रृंगार के पेड़ तले
    बैठी धवल पुष्प चादर पर
    लगती एक परी सी."

    सुंदर चित्रण..

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  9. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना...लाजवाब।

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  10. सुन्दर भावपूर्ण रचना
    सादर बधाई...

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  11. यादों से सजी सुंदर भावपूर्ण रचना ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर अपप्का स्वागत है

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  12. यादों का बहुत ही सुंदर झरोखा....

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  13. कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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