15 नवंबर, 2011

स्वर्ग वहीं नजर आया


गहन जंगल ,गहरी खाइयां
लहराते बल खाते रास्ते
था अटूट साम्राज्य जहां
प्राकृतिक वन संपदा का |
थे कहीं वृक्ष गगन चुम्बी
करते बातें आसमान से
चाय के बागान दीखते
हरे मखमली गलीचे से |
हरी भरी वादी के आगे
थी श्रंखला हिम गिरी की
था दृश्य इतना विहंगम
वहीं रमण करता मन |
ऊंचे नीचे मार्गों पर
सरल न था आगे बढ़ना
सर्द हवा के झोंके भी
हिला जाते समूचा ही |
फिर भी कदम ठिठक जाते
आगे बढ़ाना नहीं चाहते
प्रकृति के अनमोल खजाने को
ह्रदयंगम करते जाते |
जब अपने रथ पर हो सवार
निकला सूर्य भ्रमण पर
था तेज उसमें इतना
हुआ लाल सारा अम्बर |
प्रथम किरण की स्वर्णिम आभा
समूची सिमटी बाहों में
उससे ही श्रृंगार किया
हिम गिरी के उत्तंग शिखर ने |
उस दर्प का क्या कहना
जो उस पर छाता गया
दमकने लगा वह कंचन सा
स्वर्ग वहीं नजर आया |
आशा





15 टिप्‍पणियां:

  1. जब अपने रथ पर हो सवार
    निकला सूर्य भ्रमण पर
    था तेज उसमें इतना
    हुआ लाल सारा अम्बर |
    प्रथम किरण की स्वर्णिम आभा
    समूची सिमटी बाहों में
    उससे ही श्रृंगार किया
    हिम गिरी के उत्तंग शिखर ने |

    सूर्योदय का बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है ! आपकी रचनाओं के माध्यम से हम भी उस सुरम्य स्थल की सैर कर पा रहे हैं ! प्यारी रचना ! बधाई एवं आभार !

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  2. दमकने लगा वह कंचन सा
    स्वर्ग वहीं नजर आया |
    सुप्रभात का सुंदर दृश्य उपस्थित हुआ !

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  3. वाह ...बहुत ही बढिया ।

    कल 16/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।

    धन्यवाद!

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  4. बहुत ही बढिया । सुन्दर शब्द योजना....

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  5. वाह! बहुत सुन्दर.
    आभार,आशा जी.

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  6. चाय के बागानों का उल्लेख यानी देश का उत्तर पूर्व यानी सात बहनों का प्रदेश आसाम , मेघालय मणिपुर मिजोरम नागालैंड अरुणाचल त्रिपुरा प्रकृति का अनुपम सौंदर्य पहाड़ वन बर्फ सुन्दर लोग वैविध्यपूर्ण संस्कृति और आपकी सौंदर्य को बाँध लेने वाली दृष्टी और शब्द . बहुत सुन्दर

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  7. प्राकृतिक छटा बिखेरती सुन्दर प्रस्तुति

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