
 है दिखावे से भरपूर दुनिया 
कुछ स्पष्ट
 नजर नहीं आता 
अतिवादी अक्सर मिलते हैं 
कोइ तथ्य नजर नहीं आता 
आँखें तक धोखा खा जाती हैं 
अंजाम नजर नहीं आता |
जो दिखाई देता है 
कभी सत्य 
तो कभी असत्य रहता 
जो कुछ सुनते हैं 
उस पर विश्वास करें कैसे
आखों देखी  कानों  सुनी 
बातों  पर भी 
 विश्वास नहीं होता |
समाचार पत्रों के आलेख भी 
अक्सर होते एक पक्षीय 
और अति रंजित
 जानकारी निष्पक्ष कम ही देते हैं 
आक्षेप एक दूसरे पर 
और छींटाकशी
इसके सिवाय और कुछ नहीं |
हैं जाने कैसे वे लोग 
कितनी ही कसमें खाईं 
वादे  किये कसमें दिलाईं 
पर उन पर भी 
खरे नहीं उतारे 
विश्वास किस पर कैसे करें 
यह तक स्पष्ट नहीं है 
आँखें धुंधला गईं हैं
 शब्द मौन हैं 
वहाँ  भी भ्रम ही 
  नजर आता है|
है यह कैसा चलन 
आम जनता की 
कोइ आवाज नहीं है 
हर ओर दिखावा होता है 
सत्य कुछ और होता है
आशा

