21 जून, 2012

है कितना अकिंचन

एक नन्हां सा तिनका
समूह से बिछड़ा हुआ
राह में भटक गया
 बारम्बार सोच रहा
 जाने कहाँ जाएगा
होगा क्या हश्र उसका
 और कहाँ ठौर उसका
 यदि पास दरिया के गया  
बहा ले जाएगी उसे
उर्मियाँ अनेक होंगी 
उनके प्रहार से हर बार
क्या खुद को बचा पाएगा
यदि फलक पर
वजूद अपना खोजेगा


चक्रवात में फंसते ही
घूमता ही रह जाएगा
आगे बढ़ना तो दूर रहा
वहीँ फंसा रह जाएगा




   लगती उसे धरा सुरक्षित
पर अरे यह क्या हुआ 
 मनुज के पग तले आते ही
 जीवन उसका तमाम हुआ 
है कितना अकिंचन
कितना असहाय
सोचने के लिए अब 
 कुछ भी बाकी नहीं  रहा |
आशा













                                                                                                                                                                                              

12 टिप्‍पणियां:

  1. उद्वेलित मन के दर्द भरे भाव ...!!
    सुंदर रचना ...!!

    जवाब देंहटाएं
  2. gambheer rachna..sunder prateek ke madhyam se jeewan me aayee kinkartvyatbimudh sthiti ks shandaar chitran,,,sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही बढ़िया
    बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर भाव संयोजन एवं बेहतरीन बिम्ब विधान ! बहुत खूबसूरत बन पड़ी है रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर भाव संयोजन एवं अनुपम बिम्ब...

    जवाब देंहटाएं
  6. **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
    *****************************************************************
    सूचनार्थ


    सैलानी की कलम से

    पर्यटन पर उम्दा ब्लॉग को फ़ालो करें एवं पाएं नयी जानकारी



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥


    ♥ पेसल वार्ता - सहरा को समंदर कहना ♥


    ♥रथयात्रा की शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
    ***********************************************
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^
    **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**

    जवाब देंहटाएं
  7. तिनका और हवा अपनी अपनी नियति में फंसे हुए हैं .......बहुत सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: