खो जाती प्रकृति में
विचरण करती उसके
छिपे आकर्षण में|
वह उर्वशी घूमती
झरनों सी कल कल करती
तन्मय हो जाती
सुरों की सरिता में |
साथ पा वाद्ध्यों का
देती अंजाम नव गीतों को
हर प्रहर नया गीत होता
चुनाव वाद्ध्यों का भी अलग होता
वह गाती गुनगुनाती
कभी क्लांत तो कभी शांत
जीवन का पर्याय नजर आती
लगती ठंडी बयार सी
जहां से गुजर जाती
पत्तों से छन कर आती धूप
सौंदर्य को द्विगुणित करती
समय ठहरना चाहता
हर बार मुझे वहीँ ले जाता
घंटों बीत जाते
लौटने का मन न होता |
वह कभी उदास भी होती
जब मनुष्य द्वारा सताई जाती
सारी शान्ति भंग हो जाती
मनोरम छवि धूमिल हो जाती |
है वही वन की देवी
संरक्षक वनों की
विनाश उनका सह न पाती
बेचैनी उसकी छिप न पाती |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंप्रकृति पर भावमय रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सौन्दर्यपूर्वक वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाये
:-)
प्रकृति का कोई सानी कहां
जवाब देंहटाएंभाव मय बहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
जवाब देंहटाएं!!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
!!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं
प्रकृति नटी का मानवीकरण अच्छी रचना ... ...कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंशनिवार, 11 अगस्त 2012
Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approach
http://veerubhai1947.blogspot.com/
जय श्री कृष्ण ||
जवाब देंहटाएंहै वही वन की देवी
जवाब देंहटाएंसंरक्षक वनों की
विनाश उनका सह न पाती
बेचैनी उसकी छिप न पाती |
वेदना का सटीक आकलन
प्रकृति के प्रति एक निश्छल प्रेम को उद्घाटित करती बहुत ही भावपूर्ण रचना ! आनंद आ गया पढ़ कर ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआज दिक्कत यह है वन माफिया वन देवी का ही चीड हरण कर रहा है कोई भीष्म नहीं है बचाने के लिए -वन देवी हर ले गयो वन माफिया कल रात ,कृष्ण बचाओ लाज .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंवन(वन देवी ) को सुरक्षित रखने के लिए ...पेड़ों को काटने से रोकना होगा ,नए पेड़ लगाने होंगे ...पर कोई इस बात को नहीं सोचता ...
जवाब देंहटाएंप्रकृति पर बहुत ही सुंदर कविता -आनंद आ गया
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