तम और अधिक गहराता
गैरों सा व्यवहार उसका
जीवन बेरंग कर जाता
कोई अपना नहीं लगता
जीना बेमतलब लगता
जब कोई साथ नहीं देता
मन में कुंठाएं उपजाता
खुशी जब चेहरे पर होती
सहना भी उसे
मुश्किल होता
यही परायापन यही बेरुखी
अंदर तक सालती
लगती अकारथ जिंदगी
उदासी घर कर जाती
घुटन इतनी बढ़ जाती
व्यर्थ जिंदगी लगने लगती
जाने कब तक ढोना है
इस भार सी जिंदगी को
निराशा के गर्त में फंसी
इस बेमकसद जिंदगी को |
आशा
उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंकभी कभी मन तामस के साए के फंदे में जकड जाता है ...मन के भावों को बहुत अच्छे से शब्दों में ढाला है बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंउदासी के रंग लिये सुन्दर रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंतम और अधिक गहराता
जवाब देंहटाएंगैरों सा व्यवहार उसका
जीवन बेरंग कर जाता
कोइ अपना नहीं लगता
जीना बेमतलब लगता
जब कोइ साथ नहीं देता
कृपया "कोई "कर लें ,"कोइ "के स्थान पर .उदास लम्हे भी यूं ही गुजर जातें हैं ,यहाँ ठहरता कुछ नहीं सब कुछ भाग रहा है रंगमंच ज़िन्दगी पर .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक
जिंदगी की निराशा और हताशा लिए सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
nice presentation.प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
जवाब देंहटाएंgahan manobhavon ki abhivyakti .aabhar
जवाब देंहटाएंJOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN
उदास मन से उपजी कविता और भी गहराई तक असर करती है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आशा जी.
सादर
अनु
सुख-दुख को ही भोगता, जब तक रहती साँस।
जवाब देंहटाएंजीवन के ही साथ में, रहती आस-निराश।।
तम और गहराता
जवाब देंहटाएंAsha Saxena
Akanksha
इधर गहनतम तम दिखा, तमतमाय उत लोग |
तमसो मा ज्योतिर इधर, करें लोग उद्योग |
करें लोग उद्योग, उधर बस चांदी काटें |
रिश्वत चोरी छूट, लूट कर हिस्सा बाटें |
रविकर कुंठित बुद्धि, नहीं कोशिश कर जीते |
बेढब सत्तासीन, लगाते इधर पलीते ||
sangrahneey rachna..
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति .. आभार
जवाब देंहटाएंअंधेरे से भी ज्यादा किसी का रूखा व्यवहार अधिक तम बिखरा जाता है जीवन में ...
जवाब देंहटाएंउदासी और निराशा...जीवन की दिशा बदल देते हैं
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को सालता , गैरों - सा व्यवहार
जवाब देंहटाएंरंगहीन जीवन हुआ , लागे सब निस्सार
लागे सब निस्सार,'अपेक्षा' मूल दुखों का
कीजे नष्ट समूल, खिलेगा फूल सुखों का
नहीं असंभव कठिन किंतु खुद में परिवर्तन
मन को थोड़ा मार, करें सुखमय अंतर्मन ||
उदासी का आलम कुछ ऐसा ही होता है ..
जवाब देंहटाएंभावमयी रचना !