हो कौन ?कहाँ से आए
?
मकसद क्या यहाँ आने
का ?
इधर उधर की ताका
झांकी
निरुद्देश्य नहीं
लगती
चिलमन की ओट से जो
चाँद देखा
क्या उसे खोज रहे हो
?
उससे मिलने की चाह
में
या ऐसे ही धूम रहे हो |
कारण कौशल से छिपाया
मुखौटा चहरे पर
लगाया
पर आँखें उसे ही
खोजतीं
जिसे रिझाने आए हो |
यदि थोड़ी भी सच्चाई
होती
लोगों से आँखें नहीं
चुराते
प्रश्नों से बचना न
चाहते
झूठ का अभेद्य कवज
अपने साथ नहीं ढोते
|
चेहरा तो छिपा लिया
तुमने
पर आँखों का क्या
करोगे
अक्स सच्चाई का
उनसे स्पष्ट झांकता |
सब से छिपाया नहीं
बताया
अपने मन के भावों को
कैसे छिपा पाओगे
प्रेम के आवेग को
गवाह हैं आँखें
तुम्हारी
उजागर होते भावों की |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसच है आँखें मन का आईना होती हैं, सच्चाई कह ही देती हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना... आभार आशा जी
आँखें मन का आइना होती हैं ! सब कुछ बयान कर देती हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंया ऐसे ही धूम (घूम )रहे हो |
जवाब देंहटाएंकारण कौशल से छिपाया
मुखौटा चहरे(चेहरे ) पर लगाया
झूठ का अभेद्य कवज(कवच )
अपने साथ नहीं ढोते |
कैसे छिपा पाओगे
प्रेम के आवेग को
गवाह हैं आँखें तुम्हारी
उजागर होते भावों की |
जबकि चेहरा सब कुछ बोलता है ,
हो निर्दोष जरा सा ...बढ़िया प्रस्तुति आशा जी सक्सेना .
ram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आँखें सब बयां कर ही देती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
आँखे कह देती अहिं दिल का हाल सभी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भावप्रणव प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंचेहरा तो छिपा लिया तुमने
जवाब देंहटाएंपर आँखों का क्या करोगे
अक्स सच्चाई का
उनसे स्पष्ट झांकता |
सब से छिपाया नहीं बताया
अपने मन के भावों को
कैसे छिपा पाओगे
प्रेम के आवेग को
गवाह हैं आँखें तुम्हारी
उजागर होते भावों की |............ये आँखें ये रंगत सब कुछ कह रही है ....तेरी सुबह कह रही है तेरी रात का फ़साना .....देह की अपनी बड़ी सशक्त भाषा होती है जिसका मुख हमारी आँखें ही तो होतीं हैं ....यही है देह भाषा ,दैहिक मुद्रा ,दैहिक लिपि ,मानो या न मानो ...तुमने प्रेम किया है ....तुमने ही कहा था एक दिन -अगर तलाश करोगे ,कोई मिल ही जाएगा ,मगर वो आँखें हमारी ,कहाँ से लाएगा ?
बुधवार, 12 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .
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जवाब देंहटाएंदिल का आईना होती हैं आंखें ।
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