13 सितंबर, 2012

सुखद


8 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा नज़ारा होगा हो मन करेगा ही वहीँ रहने का , सुन्दर रचना

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  2. प्रक्रति सदा ही अपनाने के लिए तैयार रहती है ,यह तो हम हैं जो यह समझ नहीं पते| सुन्दर और स्वाभाविक लेखन हेतु बधाई |

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  3. प्रकृति के सानिद्ध्य में हर कोई कवि ह्रदय सुख पाता है उन दोनों का भावनाओं का जो नाता है

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  4. मन झरने सा ही तो है आपका... सुन्दर, निर्मल, शीतल, भावो के संसार में स्वछन्द होकर बहता हुआ...

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  5. प्रकृति के सानिद्ध्य को कौन नही पाना चाहेगा,,,,,

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  6. बहुत सुन्दर सृजन ! जितना चित्र मनभावन है उतनी ही खूबसूरत क्षणिका है !

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  7. हम प्रकृति की रचना हैं,जो उससे दूर चले आये -वह बार-बार पास बुलाती है .

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