कौन पिता कैसा पिता
,समझाना बेकार |
बहकावे में चाहत के
,माँ का भूली प्यार ||
षोडसी प्यारी दीखती , पर भूली संस्कार |
दिन में सपने देखती
,कुछ कहना है बेकार ||
अनजान डगर पर चली ,सारे
बंधन तोड़ |
ढलान पर पैर फिसले
,राह न पाई मोड़ ||
वात्सल्य आहत हुआ ,लगा गहन आघात
|
देख कर दुर्दशा उसकी ,मन
को हुआ संताप ||
पुष्प कुञ्ज में विचरती ,मुखडा लिए उदास |
स्नेह भरे स्पर्श का ,खो बैठी अधिकार ||
आशा
सर्वोपरि है प्यार पर, इसके कई प्रकार ।
जवाब देंहटाएंदो जीवों के बीच में, महत्त्वपूर्ण दरकार ।
महत्त्वपूर्ण दरकार, हुवे अब दो दो बच्चे ।
बही समय की धार, बदलते आशिक सच्चे ।
सम्मुख दिखे तलाक, परस्पर नफरत पाले ।
करते हटकु हलाक, मूर्ख संतान बचाले ।।
बहुत ही बेहतरीन......
जवाब देंहटाएंबाबा दादी में नहीं, रहा कभी भी प्यार |
जवाब देंहटाएंआपस में सम्मान था, सम्मुख था परिवार |
सम्मुख था परिवार, प्यार के सुनो पुजारी |
नफ़रत गर हो जय, परस्पर देते गारी |
झटपट होय तलाक, पकड़ते ढर्रा दूजा |
किन्तु पूर्वज सोच, करें रिश्तों की पूजा ||
बेहद उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बद्गिया अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: विजयादशमी,,,
ओह ! मुझे देर हो गयी आने में ! क्षमाप्रार्थी हूँ ! दिल्ली जाने के कारण यह विलम्ब हुआ है थोड़ा इंतज़ार कर लेतीं ! कोई बात नहीं ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति है ! क्या कहने !
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti...is peedhi ko sambhalna sach me mushkil hai.
जवाब देंहटाएंहर दौर में रिश्तों की एक नई परिभाषा सामने आती हैं ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंbahut hi gahre bhaw....
जवाब देंहटाएंअनजान डगर पर चली ,सारे बंधन तोड़ |
जवाब देंहटाएंढलान पर पैर फिसले ,राह न पाई मोड़ ||
संस्कार सर्वोपरी हैं ऐसी ढलानों की फिसलन में भी पांव जमें रहें इसके लिये ।