26 अक्तूबर, 2012

पर भूली संस्कार

कौन पिता कैसा पिता ,समझाना बेकार |
बहकावे में चाहत के ,माँ का भूली प्यार  ||

षोडसी प्यारी  दीखती , पर भूली   संस्कार |
दिन में सपने देखती ,कुछ कहना है  बेकार ||

अनजान डगर पर चली ,सारे बंधन तोड़ |
ढलान पर पैर फिसले ,राह न पाई मोड़ ||

वात्सल्य आहत हुआ ,लगा गहन आघात |
देख कर दुर्दशा उसकी ,मन को हुआ संताप ||

पुष्प  कुञ्ज में विचरती ,मुखडा लिए उदास |
स्नेह भरे स्पर्श का ,खो बैठी अधिकार ||
आशा






10 टिप्‍पणियां:

  1. सर्वोपरि है प्यार पर, इसके कई प्रकार ।

    दो जीवों के बीच में, महत्त्वपूर्ण दरकार ।

    महत्त्वपूर्ण दरकार, हुवे अब दो दो बच्चे ।

    बही समय की धार, बदलते आशिक सच्चे ।

    सम्मुख दिखे तलाक, परस्पर नफरत पाले ।

    करते हटकु हलाक, मूर्ख संतान बचाले ।।

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  2. बाबा दादी में नहीं, रहा कभी भी प्यार |
    आपस में सम्मान था, सम्मुख था परिवार |
    सम्मुख था परिवार, प्यार के सुनो पुजारी |
    नफ़रत गर हो जय, परस्पर देते गारी |
    झटपट होय तलाक, पकड़ते ढर्रा दूजा |
    किन्तु पूर्वज सोच, करें रिश्तों की पूजा ||

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  3. ओह ! मुझे देर हो गयी आने में ! क्षमाप्रार्थी हूँ ! दिल्ली जाने के कारण यह विलम्ब हुआ है थोड़ा इंतज़ार कर लेतीं ! कोई बात नहीं ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति है ! क्या कहने !

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  4. हर दौर में रिश्तों की एक नई परिभाषा सामने आती हैं ...बहुत खूब

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  5. अनजान डगर पर चली ,सारे बंधन तोड़ |
    ढलान पर पैर फिसले ,राह न पाई मोड़ ||

    संस्कार सर्वोपरी हैं ऐसी ढलानों की फिसलन में भी पांव जमें रहें इसके लिये ।

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