16 नवंबर, 2012

आत्म संतोष



पहले भी रहे असंतुष्ट
आज भी वही हो
पहले थे अभाव ग्रस्त
पर आज सभी सुविधाएं
 कदम चूमती तुम्हारे
फिर प्रसन्नता से परहेज क्यूं ?
कारण जानना चाहा भी
 पर कोइ सुराग न मिल पाया
परन्तु मैंने ठान लिया
कारण खोजने के लिए
तुम्हें टटोलने के लिए |

जानते  हो तुम भी
सभी इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं
समझोते भी करने होते हैं
परिस्थितियों से ,
 यह भी तभी होता संभव
जब स्वभाव लचीला हो
समय के साथ परिपक्व हो
कुंठा ग्रस्त न हो  |
चाहे जब खुश हो जाना
अनायास गुस्सा आना
 उदासी का आवरण ओढ़े
अपने आप में सिमिट जाना |
कुछ तो कारण होगा
जो बार बार सालता होगा
वही अशांति का कारण होगा
जो चाहा कर न पाए
कारण चाहे जो भी हो |
क्या सब को
 सब कुछ मिल पाता है ?
जो मिल गया उसे ही
अपनी उपलब्धि मान
भाग्य को सराहते यदि
 आत्मसंतुष्टि का धन पाते |
सभी पूर्वनिर्धारित  है
भाग्य से ज्यादा कुछ न मिलता
जान कर भी हो अनजान क्यूँ ?
हंसी खुशी जीने की कला
बहुत महत्त्व रखती है
 कुछ अंश भी यदि अपनाया
जर्रे जर्रे में दिखेगी
खुशियों की छाया
फिर उदासी तुम्हें छू न पाएगी
सफलता सर्वत्र  होगी |
आशा


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर...सकारात्मक सोच ...

    सादर
    अनु

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  2. वाकई ! अगर सभी इतनी सुलझी हुई सोच को अपना लें तो कभी असंतोष हो ही नहीं ! लेकिन यह मन इतना चंचल और लोभी होता है कि थोड़े में संतुष्ट होना जानता ही नहीं ! सार्थक सन्देश के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति !

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  3. कल 19/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. सच कहा आपने..संतोष धन सबसे बड़ा है ..और वक्त से पहले एवं किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता...प्रेरित करती रचना...

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  5. हर किसी को यह सम्पूर्ण जहां नहीं मिलता किसी को ज़मीन किसको आसमा नहीं मिलता.... प्रेरणात्मक रचना

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