पहले भी रहे
असंतुष्ट
आज भी वही हो
पहले थे अभाव
ग्रस्त
पर आज सभी सुविधाएं
कदम
चूमती तुम्हारे
फिर प्रसन्नता से
परहेज क्यूं ?
कारण जानना चाहा
भी
पर कोइ सुराग न मिल पाया
परन्तु मैंने ठान
लिया
कारण खोजने के लिए
तुम्हें टटोलने के लिए |
जानते हो तुम भी
तुम्हें टटोलने के लिए |
जानते हो तुम भी
सभी इच्छाएं पूर्ण
नहीं होतीं
समझोते भी करने होते
हैं
परिस्थितियों से ,
यह भी तभी होता
संभव
जब स्वभाव लचीला
हो
समय के साथ परिपक्व
हो
कुंठा ग्रस्त न हो |
कुंठा ग्रस्त न हो |
चाहे जब खुश हो जाना
अनायास गुस्सा आना
उदासी का आवरण
ओढ़े
अपने आप में सिमिट
जाना |
कुछ तो कारण होगा
जो बार बार सालता
होगा
वही अशांति का कारण
होगा
जो चाहा कर न पाए
कारण चाहे जो भी हो |
क्या सब को
सब कुछ मिल पाता है ?
जो मिल गया उसे ही
अपनी उपलब्धि मान
भाग्य को
सराहते यदि
आत्मसंतुष्टि का धन पाते |
सभी पूर्वनिर्धारित है
भाग्य से ज्यादा कुछ
न मिलता
जान कर भी हो अनजान
क्यूँ ?
हंसी खुशी जीने की
कला
बहुत महत्त्व रखती
है
कुछ अंश भी यदि
अपनाया
जर्रे जर्रे में
दिखेगी
खुशियों की छाया
फिर उदासी तुम्हें
छू न पाएगी
सफलता सर्वत्र
होगी |
आशा
सुन्दर व संतोषप्रद .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
प्रेरणादायी अति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर...सकारात्मक सोच ...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
वाकई ! अगर सभी इतनी सुलझी हुई सोच को अपना लें तो कभी असंतोष हो ही नहीं ! लेकिन यह मन इतना चंचल और लोभी होता है कि थोड़े में संतुष्ट होना जानता ही नहीं ! सार्थक सन्देश के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
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जवाब देंहटाएंकल 19/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने..संतोष धन सबसे बड़ा है ..और वक्त से पहले एवं किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता...प्रेरित करती रचना...
जवाब देंहटाएंहर किसी को यह सम्पूर्ण जहां नहीं मिलता किसी को ज़मीन किसको आसमा नहीं मिलता.... प्रेरणात्मक रचना
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