आज याद आया
वह किस्सा पुराना
जो ले गया उस मैदान में
जहां बिताई कई शामें
गिल्ली डंडा खेलने में
कभी मां ने समझाया
कभी डाटा धमकाया
पर कारण नहीं बताया |
मैंने सोचा क्यूँ न खेलूँ
अकारण हर बात क्यूँ मानू ?
इसी जिद ने थप्पड़ से
स्वागत भी करवाया
रोना धोना काम न आया
माँ का कहना
वी .टो. पावर हुआ
वहाँ जाना बंद हो गया
घर में कैरम शुरू हुआ
आज सोचती हूँ
कारण क्या रहा होगा
जाने कब सयानी हुई
मुझे याद नहीं |
बचपन याद आ गया .....वो वक्त कब गुज़र गया ..पता ही नहीं चला
जवाब देंहटाएंNICE हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएंकिसी को पता नहीं चलता -बाद में समझ आता है!
जवाब देंहटाएंबचपन कब गुज़र गया पता ही नहीं चला,,,,,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,,,,
resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई देर से ही सही प्रशासन जागा :बधाई हो बार एसोसिएशन कैराना .जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है
जवाब देंहटाएंहुई सयानी जब सुता, जगी सयानी मातु |
जवाब देंहटाएंसाम दाम फिर दंड से, बात सही समझातु ||
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकितना मुखर है इन पंक्तियों में छिपा संकेत .बढ़िया प्रस्तुति .
बेहद खूबसूरत उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
जवाब देंहटाएंकल 30/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
यथार्थ से साक्षात्कार कराती कविता
जवाब देंहटाएंबचपन की कितनी यादें जगा दीं आपने मज़ा आ गया ! माँ की झिडकियां जो तब बुरी लगती थीं आज कितनी याद आती हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंI am a Ayurvedic Doctor.
Cancer Treatment, Kidney Care and Treatment, HIV AIDS