27 नवंबर, 2012

आज याद आया





आज याद आया
 वह किस्सा पुराना
जो ले गया उस मैदान में
जहां बिताई कई शामें
 गिल्ली डंडा खेलने में
कभी मां ने समझाया
कभी डाटा धमकाया
पर कारण नहीं बताया |
मैंने सोचा क्यूँ न खेलूँ
अकारण हर बात क्यूँ मानू ?
इसी जिद ने थप्पड़ से
स्वागत भी करवाया
रोना धोना काम न आया
माँ का कहना
वी .टो. पावर हुआ
वहाँ जाना बंद हो गया 
घर में कैरम  शुरू हुआ
आज सोचती हूँ
 कारण क्या रहा होगा
जाने कब सयानी हुई
मुझे याद नहीं |

11 टिप्‍पणियां:

  1. बचपन याद आ गया .....वो वक्त कब गुज़र गया ..पता ही नहीं चला

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  2. किसी को पता नहीं चलता -बाद में समझ आता है!

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  3. बचपन कब गुज़र गया पता ही नहीं चला,,,,,

    बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,

    resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,

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  4. हुई सयानी जब सुता, जगी सयानी मातु |
    साम दाम फिर दंड से, बात सही समझातु ||

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  5. कितना मुखर है इन पंक्तियों में छिपा संकेत .बढ़िया प्रस्तुति .

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  6. बेहद खूबसूरत उम्दा प्रस्तुति
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  7. कल 30/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. यथार्थ से साक्षात्कार कराती कविता

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  9. बचपन की कितनी यादें जगा दीं आपने मज़ा आ गया ! माँ की झिडकियां जो तब बुरी लगती थीं आज कितनी याद आती हैं ! सुन्दर रचना !

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