जाग जाग रातें काटीं
मुश्किलें किसी से न बांटीं
कभी खोया -खोया रहा
कभी जार जार रोया
कठिनाइयां बढती गईं
कमीं उनमें न आई
सुबह और शाम
मंहगाई का बखान
रात में आते
स्वप्न में भी गरीबी
फटे कपडे और उधारी
वह बेरोजगार डिग्री धारी
हाथ न मिला पाया
भ्रष्टाचार के दानव से
सोचता दिन रात
जाए तो जाए कहाँ
वह कागज़ का टुकड़ा
मजदूरी भी करने न देता
जब भी लाइन में लगा
कहा गया "जाओ बाबू
यह तुम्हारे बस का नहीं
क्यूँ की तुम
आम आदमीं नहीं "
इस डिग्री ने तो कहीं का न छोड़ा
ना ही कुछ बन पाया
ना ही आम आदमीं से जुड़ा
आधा तीतर आधा बटेर
मात्र बन कर रह गया
मन में बहुत ग्लानी हुई
समाधान समस्या का नहीं
यह कैसे समझाए की
वह भी है एक आम आदमीं
कर्ज के बोझ से दबा है
इस डिग्री के लिए
जो अभी तक चुका नहीं
तभी तो काम की तलाश में
दर दर भटक रहा है |
आशा
मुश्किलें किसी से न बांटीं
कभी खोया -खोया रहा
कभी जार जार रोया
कठिनाइयां बढती गईं
कमीं उनमें न आई
सुबह और शाम
मंहगाई का बखान
रात में आते
स्वप्न में भी गरीबी
फटे कपडे और उधारी
वह बेरोजगार डिग्री धारी
हाथ न मिला पाया
भ्रष्टाचार के दानव से
सोचता दिन रात
जाए तो जाए कहाँ
वह कागज़ का टुकड़ा
मजदूरी भी करने न देता
जब भी लाइन में लगा
कहा गया "जाओ बाबू
यह तुम्हारे बस का नहीं
क्यूँ की तुम
आम आदमीं नहीं "
इस डिग्री ने तो कहीं का न छोड़ा
ना ही कुछ बन पाया
ना ही आम आदमीं से जुड़ा
आधा तीतर आधा बटेर
मात्र बन कर रह गया
मन में बहुत ग्लानी हुई
समाधान समस्या का नहीं
यह कैसे समझाए की
वह भी है एक आम आदमीं
कर्ज के बोझ से दबा है
इस डिग्री के लिए
जो अभी तक चुका नहीं
तभी तो काम की तलाश में
दर दर भटक रहा है |
आशा
अच्छी प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंपढने के लिए भागदौड-तीतर
व्यर्थ-
फिर किसी के हाथ में खेलना-बटेर
पहले था तीतर-मना, दौड़ा-भागा ढेर |
बड़ी बटोरी डिग्रियां, बनता किन्तु बटेर |
बनता किन्तु बटेर, लड़ाकू मुर्गा बेहतर |
दंगल में उस्ताद, भिडाए सम्मुख रविकर |
चतुर चलाये चोंच, मार नहले पे दहले |
करे नहीं संकोच, गालियाँ बकता पहले ||
इस डिग्री ने तो कहीं का न छोड़ा
जवाब देंहटाएंना ही कुछ बन पाया
ना ही आम आदमीं से जुड़ा
आधा तीतर आधा बटेर
......................
sundar rachna
इस डिग्री ने तो कहीं का न छोड़ा
जवाब देंहटाएंना ही कुछ बन पाया
ना ही आम आदमीं से जुड़ा
आधा तीतर आधा बटेर
मात्र बन कर रह गया
बिलकुल सही बात कही आंटी !
सादर
सार्थकता लिये बेहद सशक्त लेखन ...
जवाब देंहटाएंनर हो न निराश करो मन को.....
जवाब देंहटाएंइस डिग्री ने तो कहीं का न छोड़ा
जवाब देंहटाएंना ही कुछ बन पाया
ना ही आम आदमीं से जुड़ा
आधा तीतर आधा बटेर
मात्र बन कर रह गया,,,,,सुंदर अभिव्यक्ति,,,
resent post : तड़प,,,
बेहद संवेदनशील प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
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sundar rachna
जवाब देंहटाएंghotoo
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संवेदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंजीवन के कटु यथार्थ को उकेरती बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएं