नव निधि आठों सिद्धि छिपी 
इस वृह्द वितान में
जब भी जलधर खुश हो झूमें  
रिमझिम बरखा बरसे 
धरती अवगाहन करती 
अपनी प्रसन्नता बिखेरती 
हरियाली के रूप में |
नदियां नाले हो जल प्लावित 
बहकते ,उफनते उद्द्वेलित हुए 
बहा ले चले सभी अवांछित 
अब उनका स्वच्छ जल 
है संकेत उनकी उत्फुल्लता का  
वह खुशी शब्दों में व्यक्त न हो पाई 
पर ध्वनि अपने मन की कह गयी |
पर सागर है धीर गंभीर 
जाने कितना गरल समेटा 
उसने अपने उर में 
कोइ प्रभाव उस पर न हुआ 
रहा शांत स्थिर तब भी 
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