02 अप्रैल, 2013

बेटा क्या सोच रहा

आज न जाने क्यूँ बाबूजी 
उदासी धेरे मुझे 
जैसे ही पलक मूंदता 
आप समक्ष होतेमेरे
आपका हाथ सर पर 
दे रहा संबल मुझे |
हो गया कितना बदलाव 
पहले में और आज में 
तब आप अलग से थे 
जब भी सामना होता था 
भय आपसे होता  था |
पर जाने कब आपका
 व्यवहार मित्रवत हुआ
आपका अनुशासित दुलार
गहन प्रभाव छोड़ गया 
दमकता चहरा  मृदु मुस्कान लिए
दृढ निश्चय और कर्मठता का
अदभुद  प्रताप लिए
आप सा कोइ नहीं लगता|
यही पीर  मन में है
होते हुए अंश आपका 
 आप सा  क्यूं न बन पाया
चाहता समेट लूं  सब को
मैं भी अपनी बाहों में
पर भुजाओं का वह  विस्तार 
मैं कहाँ से लाऊँ
आपकी प्रशस्ति के लिए 
शब्दों की संख्या कम लगती 
माँ सरस्वती ,लक्ष्मी और काली 
तीनो का था वरद हस्त
हाथ कभी न रहे खाली |
जीवन के हर मोड़ पर
 कर्मठता ने दिया साथ 
शरीर थका पर मस्तिष्क नहीं 
दृढ़ता कम न हुई मन की 
सार्थक जीवन जिया आपने 
बने  प्रेरणा सबकी  |
सोचता हूँ मैं हर पल
 हूँ कितना भाग्यशाली 
आपकी छत्र छाया मिली 
आपने इस योग्य बनाया 
उन्नत सर मैं कर पाया 
फिर भी कसक बाकी रही
आपसा क्यूं न बन पाया |
 
आशा





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9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (02-04-2013) के चर्चा मंच-1202 पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर!

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  2. बढ़िया प्रस्तुति |
    शुभकामनायें -

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  3. बहुत सुंदर रचना ! हर सुयोग्य संतान के मन में यही भाव उपजते हैं जिसके मन में अपने पिता के प्रति अगाध सम्मान एवँ श्रद्धा होती है ! बाबूजी की याद आ गयी !

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  4. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,हर लायक बेटों में यहीं भाव उपजे,आभार.

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  5. जीवन का यथार्थ ही शायद यही है पहले हम अक्सर अपने अभिभावकों से डरते हैं लेकिन आगे चलकर यही लगता है काश हम उन जैसे बन पाते तो आज ज़िंदगी शायद कुछ और ही होती। बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति सादर...

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  6. हर सुयोग्य बेटे की सोच ऐसी ही होती है. सुन्दर रचना...आभार

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  7. बहुत उम्दा,सुयोग्य संतान माँ बाप का नाम रौशन कर घर खुशियों से भर देता है,,,

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  8. कृतज्ञ पुत्र को पिता की याद आना स्वाभाविक है =बेहतरीन प्रस्तुति

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