आँखों की आँखों से बातें
ली जज्बातों की सौगातें
कुछ हुई आत्मसात
शेष बहीं आसुओं के साथ
अश्रु थे खारे जल से
साथ पा कर उनका
हुई नमकीन वे भी
यह अनुभव कुछ कटु हुआ
वह भाप बन कर उड़ न सका
हुई बोझिल तन्हाइयां
मलिन मन मस्तिष्क हुआ
धीरज कोई न दे पाया
कटु सत्य सामने आया
कितनी बार किया मंथन
आस तक न जगी झूठी
पर मैं जान गयी
हूँ खड़ी कगार पर
कभी भी किसी भी पल
यह साथ छूट जाएगा
अधिक खींच न सह पाएगा
जीवन डोर का बंधन
जिसे समझा था अटूट
टूटेगा बिखर जाएगा
जाने कहाँ ले जाएगा |
आशा
सब कितना अनयास-अनिश्चित!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत एहसास की बढिया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post सुहाने सपने
बढ़िया है -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
marmik abhiwayakti....
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक एवं ह्रदय स्पर्शी प्रस्तुति बधाई
जवाब देंहटाएंmarmik ,khoobshurat ahshas
जवाब देंहटाएंह्रदय स्पर्शी बहुत मार्मिक प्रस्तुति,,,, बधाई Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
जवाब देंहटाएंजीवन डोर बड़ी नाज़ुक और कमज़ोर..सत्य को उद्घाटित करती सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसादर
कविता तो बहुत अच्छी है लेकिन उसका नकारात्मक स्वरुप कुछ आनंददायी नहीं है ! मन की सकारात्मकता जीवन के प्रति सही सोच को सही दिशा देती है और जीवन को खुशनुमां बनाती है इसलिए नकारात्मकता के भावों को मन में स्थान मत दीजिये !
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु