07 अप्रैल, 2013

मन की पीर

अनाज यदि मंहगा हुआ ,तू क्यूं आपा खोय |
मंहगाई की मार से बच ना पाया कोय ||
 
कोई भी ना देखता , तेरे मन की पीर  |
हर वस्तु अब तो लगती ,धनिकों की जागीर ||

रूखा सूखा जो मिले ,करले तू स्वीकार |
उसमें खोज खुशी अपनी ,प्रभु की मर्जी जान ||
 
पकवान की चाह न हो ,ना दे बात को तूल |
चीनी भी मंहगी हुई ,उसको जाओ भूल ||

वाहन भाडा  बढ़ गया , इसका हुआ प्रभाव  |
भाव आसमा छु रहे ,लगता बहुत अभाव  ||

इधर उधर ना घूमना ,मूंछों पर दे ताव  |
खाली यदि जेबें रहीं ,कोइ न देगा भाव  ||

भीड़ भरे बाजार में ,पैसों का है जोर  |
मन चाहा यदि ना मिला , होना ही है बोर ||

आशा


15 टिप्‍पणियां:


  1. कल दिनांक 08/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत ही बेहतरीन सच को उजागर करते दोहे,आभार.

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  3. बहुत ही सार्थक, सटीक और सामयिक रचना

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  4. वाहन भाडा बढ़ गया , इसका हुआ प्रभाव |
    भाव आसमा छु रहे ,लगता बहुत अभाव ..

    भाव भ्बी बढे ओर आभाव भी हुवा ... दूना असर हुवा ...

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  5. यथार्थ का सटीक चित्रण करते चुटीले दोहे ! मज़ा आ गया !

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  6. आपकी अभिविक्यति शानदार है

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  7. kadva sach bayan karte huye sundar dohe ..

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