20 अप्रैल, 2013

अद्भुद और विलक्षण

रंगों से खेलता बालक 
तूलिका ले हाथ में 
 तन्मय चित्र बनाने में 
था व्यस्त अपने आप में |
आहट से चौंका
चेहरे पर सवालिया भाव देख 
सकुचाया ,शरमाया 
फिर धीमे से मुस्काया |
बिना कुछ कहे 
अपनी कृति यहीं छोड़ 
खेलने भाग गया 
पर उत्सुकता जगा गया |
जब देखा 
क्या बनाया उसने ?
बड़ा अद्भुद नजर आया
विलक्षण उसे पाया  |
जितनी बार उसे देखता 
जिस भी कौण से देखता
कुछ नया दिखाई देता 
जो मुझे प्रेरणा देता |
बहुत सहेज कर रखा उसे 
नित्य नए चित्र बनाए
मैं खोजने लगा कृतियों में
बालक की प्रतिभा को |
एक दिन वह फिर  आया
अपना भाईचारा जताया 
बने चित्र देखना चाहे 
मैंने सारे आगे कर दिए |
 हर चित्र मनोयोग से देखता 
अपनी प्रतिक्रया भी देता 
जैसे ही वह चित्र देखा 
निशब्द ,देखता ही रह गया |
मैंने ही पूछ लिया 
तुमने यह क्या   बनाया   ?
विशिष्ट चमक से चेहरा दमका 
पर प्रतिउत्तर ना दिया |
हंसा और भाग निकला 
जैसे कह रहा हो 
खुद ही सोच लो 
है क्या इसमें |
आशा










9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...
    सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
    ...शुभकामनायें आपको !

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  2. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 21/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  3. बढ़िया है आदरणीया-
    शुभकामनायें-

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  4. बहुत सुन्दर भाव ,बढ़िया प्रस्तुति

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  5. कोमल भाव लिए ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बाल मन ऐसा ही होता है ! उसमें बहुत प्रतिभा छिपी होती है जिसे वह स्वयं पहचान नहीं पाता लेकिन देखने वालों को सहज ही प्रेरित कर जाता है ! बहुत सुंदर भावों से परिपूर्ण एक खूबसूरत रचना !

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