जा पहुंचा सरिता तट पर
वृक्षों की छाँव तले
बहती जल की धारा
था मौसम बड़ा सुहाना
मन भी उससे हारा
वहीं रुका और बैठ गया
जल में पैर डाल अपने
अस्ताचल को जाता सूरज
अटखेलियाँ जल से करता
दृश्य ने ऐसा बांधा
उठने का मन न हुआ
सहसा ठहरी दृष्टि
जल में उठता बुलबुला देख
पहले था वह नन्हा सा
फिर बड़ा हुआ और फूट गया
वह देखता ही रह गया
वे एक से अनेक हुए
बहाव के साथ बहे
थोड़ी दूर तक गए
फिर विलीन जल में हुए
विचारों ने ली करवट
सिलसिला शुरू हुआ
जीवन के बिभिन्न पहलुओं की
सतत चलती प्रक्रिया का
उसके समापन का
सृष्टि का यही तो क्रम है
क्या सजीव क्या निर्जीव में
उसे लगा खुद का जीवन
पानी के एक बुलबुले सा |
आशा
बहुत उम्दा,बढ़िया अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest postजीवन संध्या
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जीवन बुलबुला ही है ...
जवाब देंहटाएंकब टूट जाता है पता नहीं चलता ... आध्यात्म लिए सुन्दर भावपूर्ण रचना ..
नमस्कार
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (29-04-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ
बहुत बढ़िया आंटी
जवाब देंहटाएंसादर
आपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
सांसारिक वस्तुओं की नश्वरता से अवगत कराती बेहतरीन रचना ! यह प्रकृति का अपरिवर्तनशील नियम है जिसे हमें ज्यों का त्यों आत्मसात करना ही होगा ! बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसृष्टि का यही सिलसिला
जवाब देंहटाएंजीवन पानी का बुलबुला......गूढ़ प्रस्तुति।
जीवन बुलबुला ही है बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने | बहुत ही सुन्दर शब्दावली द्वारा विचारों को अभिव्यक्त किया | पढ़कर अच्छा लगा | सादर
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जीवन दर्शन का बहुत सुन्दर और सहज चित्रण....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
जीवन का सत्य ...बहुत खूब
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