02 मई, 2013

बेचैन मन


 सारे पखेरू उड़ गए
हुआ घोंसला खाली
ठूंठ अकेला रह गया
छाई ना हरियाली
आँगन सूना देख
मेरा मन क्यूं घबराए ना
क्यूं गाऊँ मैं गीत
मुझे कुछ भी भाए ना
सभी व्यस्त अपने अपने में
समय का अभाव बताते
रहते अपनी दुनिया में
उनकी ममता जागे ना
मैं अकेली रह गयी
अक्षमता का बोध लिए
पर डूबी माया मोह में
यह बंधन छूटे ना
यह जन्म तो बीत चला
तेरी पनाह में
है अटूट विशवास तुझ पर
पर मन स्थिर ना रह पाता
अभी है यह हाल
आगे न जाने क्या होगा |

11 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अकेली रह गयी
    अक्षमता का बोध लिए
    पर डूबी माया मोह में
    यह बंधन छूटे ना -
    ये बंधन सास रहते नहीं टूटती-बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ये बंधन सास रहते नहीं टूटती,,
    -बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,
    RECENT POST: मधुशाला,

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  5. तेरी पनाह में
    है अटूट विशवास तुझ पर
    पर मन स्थिर ना रह पाता
    अभी है यह हाल
    आगे न जाने क्या होगा |..dil ke bhawon ko ukerti panktiyan

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  6. अक्षम नहीं हैं आप.कोरा माया-मोह नहीं ये सारे संबंध आपको परिभाषित करने के लिये!

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  7. अभी है यह हाल
    आगे न जाने क्या होगा | :(

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  8. अक्षमता का बोध लिए
    पर डूबी माया मोह में
    यह बंधन छूटे ना
    ..यह माया मोह ही तो है जिसे एक झटके में कोई भी नहीं तोड़ पाता ..अकेलापन सबको काटने दौड़ता है ...मर्मस्पर्शी रचना

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  10. आगे भी राम जी सब भली करेंगे ! आस्था को डिगने ना दें जो होगा वह अच्छा ही होगा ! सुंदर प्रस्तुति !

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