ले ज्योत्सना साथ में
मयंक चला भ्रमण करने
अनंत व्योम के विस्तार में
सभी चांदनी में नहाए
ज्योतिर्मय हुए
क्या पृथ्वी क्या आकाश
पर पास के अभयारण्य में
यह सब कहाँ
धने पेड़ों की टहनियां
आपस में बात करतीं
आपस की होती सुगबुगाहर
विचित्र सी आवाज से
मन में भय भरती
सांय सांय चलती हवाएं
आहट किसी अनजान के
पद चाप की
अदृश्य शक्ति का अहसास करा
भय दुगुना करती
कभी छन कर आती रौशनी में
कोई छाया दिखाई देती
मन में भय उपजता
सही राह न दिखाई देती
एकाएक ठिठकता सोचता
कहीं यह भ्रम तो नहीं
साहस कर कदम आगे बढाता
फिर भी अकेलापन सालता
काश कोइ साथ होता
राह तो दिखाता
चांदनी रात में तब घूमने का
आनंद कुछ और ही होता |
आशा
बहुत सुन्दर चितरण..आभार
जवाब देंहटाएंतारों भरे आकाश में
जवाब देंहटाएंले ज्योत्सना साथ में
मयंक चला भ्रमण करने
अनंत व्योम के विस्तार में
बहुत खूबसूरत भाव... आभार आशाजी
सुन्दर मनभावन रचना !!
जवाब देंहटाएंअरे वाह!
जवाब देंहटाएंवाह बढिया रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: दीदार होता है,
बहुत खुबसूरत रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना!!
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर तारों भरी चाँदनी रात में भय कैसा ! भय मन का विकार है उसे दूर भगा दीजिए और इस अद्भुत नज़ारे का आनंद लीजिए ! बहुत सुंदर रचना है ! बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रण...
जवाब देंहटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंकाश हर कदम कोई हमारे साथ चले हमें राह दिखाए.
जवाब देंहटाएंमन के भावों को व्यक्त करती रचना.आभार
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post'वनफूल'