एक चिड़िया नन्हीं सी
टुवी टुवी करती
प्रसंनमना उड़ती फिरती
डालियों पर
एक से दूसरी पर जाती
लेती आनंद झूलने का
एकाएक राह भूली
झांका खिड़की से
भ्रमित चकित
कक्ष में आई
चारो ओर दृष्टिपात करती
पहले यहाँ वहां बैठी
सोच रही वह कहाँ आ गयी
दर्पण देख रुकी
टुवी टुवी करती
मारी चोंच उस पर
आहत हो कुछ ठहरी
फिर वार पर वार किये
मन ने सोचा
लगता कोइ दुश्मन
जो उसे डराना चाहता
पर यह था केवल भ्रम
उसके अपने मन का
यूं ही आहत हुई
जान नहीं पाई
कोई अन्य न था
था उसका ही अक्स
जिससे वह जूझ रही थी
बिना बात यूं ही
भयभीत हो रही थी |
आशा
सुंदर गीत ..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सत्य कहती रचना ....!!शीशे में भी हम अपने मन के भाव ही देख पाते हैं ....
जवाब देंहटाएंऐसे ही भ्रमों मे मे पड़ा रहना -यही संसार है!
जवाब देंहटाएंbahut sunder likhin.....
जवाब देंहटाएंइसी तरह हम भी अनजान भ्रमों से भयग्रस्त रहते हैं ! सार्थक प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंशायद हम भी इसी तरह के कई भ्रमों से घिरे है,जिन्हें हम चाह के भी पहचान नही पाते.
जवाब देंहटाएंआग्रह मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे धन्य बनाए.
मेरी नयी रचना "अधूरे शब्द"
कभी कभी इंसान भी अपने आप से ऐसे ही डर जाता है ...
जवाब देंहटाएंसच लिखा है बहत ही ...
होते हैं अक्सर ऐसे भ्रम... सार्थक रचना... आभार
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ,सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंपर अब ये छोटी चिड़ियाँ तो लुप्त सी होती जा रही हैं