पालापोसा बड़ा किया
जाने कितनी रातें
आँखों आँखों में काटीं
पर उसे कष्ट न होने दिया
पढ़ाया लिखाया
सक्षम बनाया
जो हो सकता था किया
पर रही पालने में कही कमीं
बेटी बेटी न रही
कितनी बदल गयी
जिस पर रश्क होता था
कहीं गुम हो गयी
जाने कब खून सफेद हुआ
संस्कार तक भूली
धन का मद ऐसा चढ़ा
खुद में सिमट कर रह गयी
यही व्यवहार उसका
मन पर वार करता
आहत कर जाता
हो अपना खून या पराया
रिश्ता तो रिश्ता ही है
सूत के कच्चे धागे सा
अधिक तनाव न सह पाता
झटके से टूट जाता
ममता आहत होती
दूरी बढ़ती जाती |
वाह!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
वाह!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
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सच में.....
जवाब देंहटाएंआधुनिकता की भेडचाल में बच्चे अपनों से दूर होते जा रहे हैं...दुखद है..
सादर
अनु
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ चकाचौंध में खोता एक अनमोल रिश्ता. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद है इस प्रकार मां बेटी के प्रारम्भिक रिश्ते को आज की कीमत पर टूटते देखना। आशा है हालात सुधरेंगे।
जवाब देंहटाएंrishte me bhi maap taul hone laga hai ....marmik prastuti ....
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना ! सामयिक आवेग में लोग अक्सर ऐसी भूल कर बैठते हैं लेकिन जब सब कुछ नियंत्रित हो जाता है तो विचारों में भी अपेक्षित बदलाव आ जाता है ! सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंरिश्ता तो रिश्ता ही है
जवाब देंहटाएंसूत के कच्चे धागे सा
अधिक तनाव न सह पाता
झटके से टूट जाता
ममता आहत होती
दूरी बढ़ती जाती |--बहुत सुंदर प्रस्तुति
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.मर्मस्पर्शी रचना !
जवाब देंहटाएंहो अपना खून या पराया
जवाब देंहटाएंरिश्ता तो रिश्ता ही है
सूत के कच्चे धागे सा ..आखिर सीमा तो सबकी है बेहतरीन रचना सादर प्रणाम के साथ
कभी-कभी ऐसा हो जाता है दो पीढ़ियों के बीच का अंतराल है यह.एक दिन भरेगा ज़रूर !
जवाब देंहटाएंमाँ का दिल और मंदिर का दीपक एक सामान है खुद जल कर भी उजाला फैला देता है
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