17 मई, 2013

नैसर्गिक कला

प्यारे प्यारे कुछ पखेरू
चहकते फिरते वन में 
पीले हरे  से अलग दीखते
पेड़ों के झुरमुट में
एक विशेषता देखी उनमें 
कभी न दीखते शहरों में |
वर्षा ऋतु आने के पहिले
 नर पक्षी तिनके चुनता 
एक नीड़ बनाने में 
इतना व्यस्त होता 
श्रम की अदभुद मिसाल दीखता |
उस नीड़ की संरचना
 आकर्षित करती
 हर जाने आने वाले को
पेड़ से लटका हुआ
 फिर  भी इतना सुदृढ़ कि 
कोई नष्ट ना कर पाए 
वायु के थपेड़े हों 
या किसी का प्रहार |
एक दिन ले प्रियतमा 
पखेरू आया वहां 
सुखी संसार बसाया अपना
था प्रवेश मार्ग वहां 
संगिनी बाट जोहती 
 झांकती उसमें से 
 अपने प्रिय के आने की |
था एक अद्भुद नगर सा 
कुछ जोड़े रहते थे 
कुछ मकान खाली भी थे 
चूजों की आहट आतीं थीं 
लगते थे धर आवाद |
पर सब पखेरू  उड़ गए 
कुछ अंतराल के बाद
अब वहां कोइ न था 
बस थे  घौंसले रिक्त
फिर भी था अटूट बंधन उनका 
उन वृक्षों की डालियों  से  |








20 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भाव ,सुंदर कविता ....

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  2. फिर भी था उनका अटूट बंधन.... डालियों से.. बहुत सुंदर भाव... सादर.

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. नीड़ से पक्षियों का सम्‍ब्‍ान्‍ध उन्‍हें छोड़ने के बाद भी बना हुआ है, ऐसी भावयुक्‍त कविता अच्‍छी है।

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  5. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 19/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  6. पर सब पखेरू उड़ गए
    कुछ अंतराल के बाद
    अब वहां कोइ न था
    बस थे घौंसले रिक्त
    फिर भी था अटूट बंधन उनका
    उन वृक्षों की डालियों से |

    ...बहुत सुन्दर अंतस को छूती रचना...

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  7. bahut prerna deti hai yah kavita ..sach hai sambandh kabhee pooree tarah khatm nahi hona chahiye ..sunder prastuti..apne blog par saadar amantran ke sath

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  8. कुछ रिश्ते बड़े ही अटूट होते हैं... सुन्दर भाव... आभार

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  9. बहुत ही सुंदर तस्वीरों के साथ बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ! आनंद आ गया ! मानव जीवन के कुछ सत्य पक्षियों के जीवन में भी हू ब हू दिखाई देते हैं ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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  10. बाबुई पक्षी की यह शिल्पकला वास्तव में अद्वितीय है .वुद्धि केवल मनुष्य में नहीं इतर प्राणी में भी है
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postअनुभूति : विविधा
    latest post वटवृक्ष

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  11. भाव पे ... कितना कुछ सिखा जाते हैं ये पंछी ... लाजवाब रचना है ...

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  12. बहुत सुन्दर.....
    कला और नेह का संगम...

    सादर
    अनु

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  13. फिर भी था अटूट बंधन उनका
    उन वृक्षों की डालियों से |----
    मनुष्य को यह सीखने की आवश्यकता है इनसे
    मन को स्पर्श करती रचना
    बहुत खूब
    सादर


    आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
    http://jyoti-khare.blogspot.in


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  14. एक विशेषता देखी उनमें
    कभी न दीखते शहरों में ....
    .....बड़े बड़े शहरों में ऐसी स्थिति है लेकिन शुक्र है हम छोटे शहर में हैं .... मेरे तो बगीचे में भी कुछ दिन पहले ही बया ने घोंसला बनाया है ...और हमारे श्यमला पहाड़ी पर तो बहुत से घोंसले हैं ..जो मुझे बहुत प्यारे लगते हैं मैं एक पोस्ट भी लिखी है बस कुछ दिन में उसे पोस्ट करने की सोच रही हूँ ..अभी फिलहाल फाख्ता ने हमारी खिड़की पर अन्टीना पर अंडें दिया हैं ...वह भी तीसरी बार ...
    आपकी सुन्दर रचना पढ़कर मन में आया ..तो बताने को मन हुआ ...
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ..

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