13 जुलाई, 2013

कई रूप धरती के




ऋतुओं के आने जाने से
दृश्य बदलते रहते
धरती  के सजने सवरने के

अंदाज बदलते रहते |
उमढ घुमड़ कर आते
काली जुल्फों से लहराते बदरा
प्यार भरे अंदाज में
 सराबोर कर जाते बदरा
वह हरा लिवास धारण करती
धानी चूनर लहराती
खेतों की रानी हो जाती |
वासंती बयार जब चलती
वह फिर अपना चोला बदलती
पीत वसन पहने झूमती
नज़र जहां तक जाती
वह वासंती नज़र आती |
जब सर्द हवा दस्तक देती
वह धवल दिखाई देती
प्रातः काल चुहल करती
रश्मियों के संग खेलती
उनके रंग में कभी रंगती
तो  कभी श्वेता नजर आती |
पतझड़ को वह सह न पाती
अधिक उदास हो जाती
डाली से बिछुड़े पत्तों सी
वह पीली भूरी हो जाती
विरहनी सी राह देखती
अपने प्रियतम के आने की |
ग्रीष्म ऋतु के आते ही
तेवर उसके बदल जाते
वह तपती अंगारे सी
परिधान ऐसा धारण करती
कुछ अधिक सुर्ख  हो जाती
धरती नित्य सजती सवरती
नए रूप धारण करती |
आशा


30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।

    जवाब देंहटाएं
  2. धरती के बदलते रूपों का सुन्दर चित्रण
    बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रीना जी आप काफी समय् बाद मेरे ब्लोग् पर आईं हैं क्या बात है |टिप्पणी हेतु आभार |
      आशा

      हटाएं
  3. धरती के बदलते रुप का सुन्दर चित्रण...

    जवाब देंहटाएं
  4. धरती के परिवर्तित होते रूप का खुबसूरत और सुंदर अभिव्यक्ति .......!!

    जवाब देंहटाएं
  5. खूबसूरत भाव और उतना ही खूबसूरत शब्द संयोजन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर रचना ! धरिणी इसी तरह नए-नए रूप धारण कर हमें चमत्कृत एवँ मोहित करती रहती है !

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तर
    1. बहुत दिन बाद आपका कमेन्ट देखा है शालिनी जी |इस हेतु धन्यवाद |
      आशा

      हटाएं
  8. सूचना हेतु धन्यवाद अरुण जी |

    जवाब देंहटाएं
  9. सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  10. धरती के विभिन्न रूपों की छटा बहुत सुंदर है .

    जवाब देंहटाएं
  11. धरती नित रंग बदलती
    नये रूप धारण करती ।

    बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: