ओ तितली हो क्यूं उदास
ले रही हो गहरी उंसास
पंख रंग बिरंगे अपने
कहाँ छोड़ कर आई हो |
क्यूं पहले सी खुशी नहीं
ना चटक चुनरी पहनी
ये काले काले पंख लगाए
क्या जताने आई हो |
क्या तुम भी सदमें में हो
है मन संतप्त तुम्हारा भी
देश की बदहाली पर
शोक मनाने आई हो |
जल प्लावन से हो कर त्रस्त
जन जीवन है अस्त व्यस्त
हुए काल कलवित अनेक
डूबे घर संसार |
कितनों के घर उजड़ गए
वे बेघरबार हो गए
क्या शोकाकुल परिवारों को
धैर्य बंधाने आई हो |
उनके दुःख में हो कर दुखी
दर्द बांटने आई हो
हो तुम आखिर क्यूं उदास
अपने रंग कहाँ छोड़ आई हो |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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गुरूजनों को नमन करते हुए..शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (22-06-2013) के शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ( चर्चा- 1359 ) में मयंक का कोना पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु धन्यवाद शास्त्री जी |
हटाएंआशा
बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआदि गुरु को सादर प्रणाम-
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति-शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपको भी शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं
हटाएंsundar rachna....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मुकेश जी |
हटाएंबहुत खूब...तितली से वार्तालाप
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंसच में ऐसा लगता है कि देश और परिवेश की दुर्दशा पर प्रकृति के सारे प्राणी शोक संतप्त हैं ! सुंदर कोमल तितलियाँ भी ! बहुत खूबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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